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इस कथा में जो संदेश है, उसका सार यही है कि घर आए अतिथि का सत्कार होना चाहिए। यमराज ने भी घर आए अतिथि का सत्कार करना उचित समझा। यमी ने अपने पति से कहा कि अग्नि देवता ब्राह्मण के रूप में हमारे द्वार आए हैं, आप उनसे ऐसा व्यवहार करें जिससे हमारे यहाँ सुख-शांति बनी रहे । कहीं ऐसा न हो कि ब्राह्मण देवता नाराज होकर हमें श्राप दे जाएँ। ऐसे ब्राह्मण कोई सामान्य पुरुष नहीं हुआ करते। ये तो एक तरह से ब्रह्मा के ही अंश होते हैं। इनमें ब्रह्म-तत्त्व समाहित होता है। जो अपनी साँस-साँस में ब्रह्म-तत्त्व की उपासना करते हैं, वे ब्राह्मण होते हैं। ऐसे ब्राह्मणों का होना धरती का सौभाग्य है। ऐसे ब्राह्मण का घर की दहलीज़ पर माँगने आना बहुत बड़ी बात है।
जब-जब भी लगे कि ब्रह्म-तत्त्व की सेवा में लीन रहने वाले किसी ब्राह्मण के दर्शन हुए हैं तो उसकी सेवा वैसे ही करना जैसे अपने गुरु की करते हो, जैसे मंदिर में जाकर भगवान की पूजा करते हो, क्योंकि प्रभु की सेवा में और ब्राह्मण की सेवा में यूँ कोई अंतर नहीं है। वे ब्राह्मण अपने-आप में चलते-फिरते मंदिर हुआ करते हैं, पवित्र मानसरोवर, पवित्र पुष्कर सरोवर की तरह हुआ करते हैं । उनके पास बैठना ही अपने
आप में गंगा-स्नान करने जैसा हुआ करता है। इसलिए यमी कहती है, हे सूर्य-पुत्र, जाइए, जल से उस ब्राह्मण का पाद-प्रक्षालन करिए। घर पर कोई मेहमान आए, तो उसके सम्मान का सबसे अच्छा तरीका यही है कि सबसे पहले जल से उनके चरण पखारे जाएँ।
रामायण से यही सीख मिलती है कि हमें किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। आधुनिक युग में श्री रामानन्द सागर ने टीवी पर रामायण को धारावाहिक के रूप में प्रदर्शित कर आज की पीढ़ी को एक ऐसा ख़ज़ाना दे दिया है कि जिसका कोई मोल नहीं लगाया जा सकता। जिस महान ग्रंथ को लोग पढ़कर जानें, उसे फिल्मांकन के रूप में देख श्रद्धा का आवेश कई गुणा बढ़ गया। सभी जानते हैं कि जब-जब टीवी पर रामायण का प्रसारण होता था, देशभर में सड़कें सूनी हो जाया करती थीं। रामायण ने लोगों को बताया कि जब-जब ऋषि-मुनि राम-दशरथ के महलों में आए, तब-तब राम-दशरथ ने उनके पाँव धोकर अपने माथे से लगाया। इसी तरह वनवास के दौरान राम जिस-जिस ऋषि-मुनि के आश्रम में गए, वहां उन्होंने गंगा-जल से उनके पाँव धोए। सम्मान राम का नहीं, घर आए अतिथि का किया गया। अतिथि के इस तरह के सम्मान का तरीका आज देखने को नहीं मिलता।
कुछ वर्ष पहले तक लोग अपने घरों के बाहर लिखते थे, अतिथि देवो भवः । जमाने ने करवट बदली। फिर लिखा जाने लगा, स्वागतम्। आजकल तो प्रायः घरों के बाहर एक तख्ती लटकी मिलती है, जिस पर लिखा होता है, कुत्ते से सावधान। पता
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