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________________ एक ब्राह्मण यज्ञशाला के बाहर खड़ा है और दान माँग रहा है, तो उनसे न रहा गया। वे यज्ञ की वेदी से उठ गए। उनके गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें खूब समझाया कि यज्ञ अधूरा रह जाएगा; लेकिन बली नहीं माना। उसे इस बात की चिंता थी कि एक ब्राह्मण उनके द्वार से निराश न लौट जाए। ब्राह्मण निराश लौट गया, तो उनकी कीर्ति नष्ट हो जाएगी। वे बाहर आए। देखा कि सिर पर छाता, हाथ में कमंडल, गले में यज्ञोपवीत धारण किए एक बालक खड़ा है । बली पहचान गए कि यह विष्णु भगवान हैं, लेकिन प्रत्यक्ष में कुछ नहीं बोल पाए । बालक ने उनसे कहा, 'हे राजन्, तुम्हें धन्य है। एक ब्राह्मण के लिए तुम यज्ञ की वेदी छोड़कर उठ आए, तुम्हारा कल्याण हो।' बली ने पूछा, 'ब्राह्मण देवता! क्या माँगते हो? मेरे द्वार से निराश न लौटोगे।' वामन बली को परखते हैं, वे पूछते हैं, 'कहीं इनकार तो न कर दोगे?' बली उन्हें आश्वस्त करते हैं । तब तक शुक्राचार्य भी वहाँ आ जाते हैं। वे विष्णु की रचाई माया को समझ जाते हैं। वे बली को समझाते हैं कि वह कोई प्रण न करे, अन्यथा सब कुछ खो बैठेगा। ये साक्षात विष्णु हैं । बली कहते हैं, जो भी हो घर आए ब्राह्मण को दान देने से मैं पीछे नहीं हट सकता। शुक्राचार्य फिर समझाते हैं कि मेरी बात नहीं मानी, तो तू श्रीहीन हो जाएगा, लक्ष्मीहीन हो जाएगा। लेकिन बावला हो चुके बली ने उनकी एक न सुनी। वामन बली से तीन पाँव जमीन माँगते हैं। बली प्रसन्न हो कहता है, हे ब्राह्मण देवता, आपने माँगा भी तो क्या माँगा। वामन अपने कमंडल से जल निकालकर बली से प्रतिज्ञा करने को कहते हैं। शुक्राचार्य देखते हैं कि बली नहीं समझ रहे हैं, तो वे सूक्ष्म रूप बनाकार कमंडल की नली में प्रवेश कर जाते हैं । बली अपनी हथेली में पानी लेने का प्रयास करते हैं, तो पानी नहीं निकलता। भगवान विष्णु मुस्कुराते हैं। उन्हें शुक्राचार्य द्वारा अपने शिष्य को बचाने के लिए किया जा रहा प्रयास समझ में आ जाता है। वे सोचते हैं कि शुक्राचार्य ने दानवों के गुरु बनकर देवताओं का बहुत नुकसान किया है। आज इन्हें भी थोड़ी-सी अक्ल दे दी जाए। वे जमीन पर पड़ा एक तिनका उठाकर कमंडल की नली में डालते हैं जिससे शुक्राचार्य की एक आँख फूट जाती है। अंततः बली अँजुली में जल भर कर प्रतिज्ञा लेते हैं। वामन उनसे तीन पाँव जमीन माँगते हैं । वामन पहले पांव में देवलोक माप लेते हैं, दूसरे पाँव में पूरी धरती आ जाती है। तीसरे पांव में आधे में पूरा पाताल लोक आ जाता है तो वामन बली से पूछते हैं, अब आधा पाँव कहाँ रखू ? बली सिर झुका लेते हैं और कहते हैं, प्रभु! आधा पाँव मेरे सिर पर रखें। तब वामन प्रभु अपने असली रूप में प्रकट होते हैं और कहते हैं, तुम धन्य हो राजा बली। जिस सिर पर मेरा पाँव लगा, वह हमेशा मेरा हिस्सा बना रहेगा और तुम पाताल के अधिपति कहलाओगे। इसके साथ ही बली सीधे पाताल चला गया। 62 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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