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________________ कुर्बानी नहीं दे सकता। नचिकेता ने कहा, 'मेरे प्रिय पिता, आपका पुत्र आपके वचनों की आन रखने के लिए यम से साक्षात्कार करने जाएगा।' नचिकेता ने तो फैसला कर लिया था कि पिता की बात का मान रखना है। मान मुफ्त में तो नहीं रखा जाता। मान रखने के लिए त्याग तो करना ही पड़ता है। फ़ाँसी का फ़ैसला सुनाए जाने के बाद भगतसिंह की माँ उसके पास पहुँची। कहने लगी, 'अभी तेरी उम्र ही क्या है ? अभी तो तुझे बहुत जिंदगी देखनी है।' भगतसिंह ने कहा, 'शेर की माँ की आँखों में आँसू शोभा नहीं देते। एक दिन तो सबको मरना है माँ, फिर मैं तो देश के लिए जान दे रहा हूँ। यह गौरव क्या कम है कि तेरा पुत्र देश के काम आ रहा है, देश भी माँ ही है। एक पुत्र अपनी माँ के लिए काम आ रहा है। भगतसिंह के भाग्य में इतना गौरव काफ़ी है।' ___माँ को समझाते हए भगतसिंह ने कहा, 'जीवन अनित्य है। शरीर मरणधर्मा है। कुछ भी अमर नहीं है। पैदा होने वाला कोई जिंदा नहीं रहा, न कोई रहने वाला है। जो भी धरती पर आएगा, उसे जाना ही होगा। जीवन एक सहयात्रा है। हम आते हैं, लोगों के साथ चलते हैं। फिर अपनी-अपनी राह निकल जाते हैं। कौन, कहाँ जाता है, किसी ने नहीं जाना। कोई आज जा रहा है तो कोई कल जाने वाला है, दुनिया है धर्मशाला। इसलिए माँ, तू शोक न कर । करना है तो गौरव कर, और देना है तो आशीर्वाद दे कि यह तेरा लाल हर जन्म में इसी तरह माता की तरह आदरणीय अपनी मातृभूमि के काम आए।' मृत्युंजय वही बनते हैं जो मृत्यु के भय से मुक्त हो जाते हैं। अपनी मृत्यु को हमेशा याद रखने वाला शोक से मुक्त रहता है । तब इस दुनिया से मोह नहीं हो पाएगा। इंसान पाप-कर्म से मुक्त रहेगा। कुछ लोग जीवन से संतुष्ट होकर जाते हैं, कुछ असंतुष्ट ही रह जाते हैं। कुछ पहली साँस के साथ ही संतुष्ट हो जाते हैं और कुछ पूरा जीवन निरर्थक ही बिता देते हैं। मैं तो हर हाल में फ़क़ीरी का आनन्द लेता हूँ। फ़क़ीर की तरह हर हाल में मस्त रहता हूँ। मेरी तमन्ना है कि जीऊँ तो फ़क़ीरी में और अंतिम साँस लूँ तो फ़क़ीरी में। फ़क़ीरी का मतलब है हर हाल में आनन्दित रहना। दुनिया रहे चाहे बस्ती में, पर हम तो रहेंगे मस्ती में। महावीर ने, बुद्ध ने अनित्यता पर जोर दिया है। प्रत्येक वस्तु अनित्य है। प्रकृति का अर्थ ही है परिवर्तनशीलता। प्रकृति ने हमें जन्म दिया है और प्रकृति में ही हमें अंतत: समा जाना होता है। यह बुनियादी बात किसी को समझ में आ जाए तो ज़िन्दगी की आधी समस्याएँ, आधी सिर पच्चियाँ समाप्त हो जाएँ। जब सब-कुछ परिवर्तनशील है, फिर क्यों व्यर्थ ही मोह में फंसे रहें। धृतराष्ट्र ने मोह में पड़कर पांडवों के प्रति जो अन्याय किया, उसका बाद में उन्हें गहरा पश्चाताप 49 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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