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और सीट पर बैठने के बाद अपने उस सहयात्री को धन्यवाद देने लगा, जिसने उसे लात लगाई थी। वह यात्री हैरान-सा उसका मुँह देखने लगा। भला लात मारने वाले को धन्यवाद थोड़े ही मिलता है। उसने धन्यवाद का कारण जानना चाहा। मोटे ने कहा, 'भाई तुम्हारी लात की बदौलत ही मैं बस के भीतर आ पाया। आपकी बड़ी मेहरबानी होगी, कृपया उतरते समय भी मुझे ऐसी ही एक लात लगा देना।'
आदमी जानता है कि क्या प्रतिकूल है और क्या अनुकूल। नचिकेता ने ऐसा ही सोचा। यमराज के पास जाने में ज़रूर कुछ-न-कुछ गहरी बात छिपी है। जाने से पहले जब नचिकेता ने पिता के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद माँगा, तो पिता को अहसास हुआ होगा कि यह मैंने क्या कह डाला। यह तो सचमुच यमराज के पास जा रहा है। उन्हें प्रायश्चित हुआ होगा। सोचा होगा कि मैं अब पुत्रविहीन हो जाऊँगा, लेकिन वे कर भी क्या सकते थे। ज़ुबान से शब्द निकल चुके थे। उस ज़माने में मुँह से निकला शब्द कितना मूल्यवान होता था, यह केवल इस बात से समझा जा सकता है कि कुंती ने बिना देखे अपने पुत्रों से कह दिया था कि जो लाए हो, हमेशा की तरह भाइयों में बाँट लो। यह तो बाद में पता चला कि वे द्रौपदी को लेकर आए थे। बात माँ के मुँह से निकल पड़ी तो निकल ही पड़ी, द्रौपदी को पाँच पतियों की पत्नी बनना पड़ा।
पिता की बात रखने के लिए ही नचिकेता यमलोक जाने को तत्पर हो गया था। भगवान राम वन जाने लगे, तो महाराज दशरथ को भी बड़ी पीड़ा हुई होगी लेकिन वे क्या कर सकते थे। जो कह डाला, सो कह डाला। राम की तरह नचिकेता ने भी पिता के शब्दों का मान रखने का फैसला किया। पिता ने रोकना चाहा होगा, तब भी वे नहीं रुके होंगे। . प्रहलाद, ध्रुव जैसे लोग बचपन में ही सिद्धियाँ पा चुके थे। नचिकेता भी पीछे नहीं था। उसने पिता को समझाया होगा, यह शरीर तो मरणधर्मा है। जब आपने मुझे मृत्यु को दान में दे ही दिया है, तो विचार और शोक कैसा? इंसान पैदा होता है, जीता है, एक दिन मर जाता है। आज जीना है, कल मर जाना है। कोई भी अमर नहीं है। यहाँ सभी मृत्युलाल हैं, अमरचन्दजी कोई नहीं है। कोई अमरचन्दजी नाम रख लेने से अमर नहीं हो जाता। यह सब को भुलावे में रखने की बातें हैं। मृत्यु से भय कैसा? मुझे मृत्यु से भय नहीं है। मृत्यु बुरी नहीं लगती, क्योंकि वह जीवन का अनिवार्य चरण है। हाँ, सड़-सड़ कर मरना अवश्य बुरा लगता है। ययाति ने अपने पुत्र से यौवन माँग लिया तो भी क्या हुआ, वह भी समाप्त हो गया। आप पुत्र-मोह में न पड़ें। मोह में अटका रहने वाला जीवन की
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