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________________ रहा। कर्त्तव्य का भान रहता, तो 'महाभारत' नहीं होता। तब जो होता, वह केवल 'भारत' होता। जीवन और जगत् को समझना ही महत्त्वपूर्ण है। जीवन अनन्त रहस्यों से भरा है। परम सत्य यही है कि जीवन परिवर्तनशील है। हम सब सहयात्री हैं, । इस धरा पर आते हैं, चले जाते हैं; अन्यथा न कोई जन्म है और न ही मृत्यु । विपश्यना-ध्यान करने वाले 'अणिच्चम्' का प्रयोग करते हैं। प्रत्येक साधक को जीवन से विरत होने के लिए इस शब्द को हमेशा याद रखना चाहिए। 'अणिच्चम्' का मतलब है, संसार में सब-कुछ अनित्य है। यहाँ हर महल खण्डहर होने के लिए है। हर जन्म मृत्यु में ढलने के लिए है। जो आया है सो जाएगा - संसार का यह एक इकलौता अखण्ड सत्य है। मूर्ख मूर्छित होते हैं, समझदार जागृत होते हैं। जो जागृत होते हैं, वे इस अनित्यता की धूप-छाँव के खेल में सत्य को आत्मसात् कर लेते हैं। वे इस बात को भली-भाँति समझ लेते हैं कि जो चल रहा है, वह भी बीत जाएगा। कुछ भी शाश्वत नहीं रहेगा। एक सम्राट को उसके गुरु ने एक अंगूठी दी। उसमें एक छोटे कागज के पुर्जे पर लिखा था कि यह भी बीत जाएगा। दिस विल टू पास। राजा राजदरबार में बैठा विचार कर रहा था, इस वाक्य का क्या अर्थ है। उन्हें लगा, आज मैं सिंहासन पर बैठा हूँ, यह भी बीत जाएगा। उन्हें लगा, नहीं ऐसा कैसे हो सकता है ! मैं आज राजा हूँ, कल भी राजा ही रहूँगा। कुछ समय बाद पड़ोसी राजा ने उस पर हमला किया। वह हार गया। उसे अपने कुछ सैनिकों के साथ जंगल में भटकना पड़ा। एक दिन फिर राजा किसी गुफा में बैठा विचार कर रहा था कि उसे अपनी अंगूठी में रखे उस पुर्जे की याद आई। उसने पढ़ा, यह भी बीत जाएगा। राजा में एक नया जोश भर उठा। उसने अपनी ताकत को फिर से इकट्ठा किया और पड़ोसी राजा पर हमला कर अपना राज्य फिर से इख्तियार कर लिया। सम्राट राजगद्दी पर बैठकर जब अपना मुकुट पहनने लगा तो उसे वही वाक्य याद आया, 'यह भी बीत जाएगा।' वह बक्खू हो गया। वह सिंहासन से खड़ा हो गया, जब कुछ भी नित्य नहीं है, तो फिर कैसा राज और कैसा मुकुट? वह निकल पड़ा संन्यास की राह पर। उसे ज्ञान हो गया था कि जीवन अनित्य है। यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। फिर राज्य से कैसा मोह ? दुनिया कई रंगों से भरी है। यहाँ रंगी को नारंगी कहे, पके दूध को खोया, चलती को गाड़ी कहे, देख कबीरा रोया। ज्ञानी तो भली-भाँति समझता है कि सब कुछ अनित्य है। पत्नी सात जन्म तक साथ निभाने की बात करती है, लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बन जाती हैं कि तलाक हो जाता है। एक जन्म का साथ भी नहीं निभ पाता। 50 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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