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________________ समझाया, 'भाई, शुक्र इसलिए मनाओ क्योंकि मैं आज साइकिल लेकर निकला हूँ। वास्तव में मैं ट्रक चलाता हूँ। जरा विचार करो, आज मैं ट्रक लेकर निकला होता और तुम उससे टकराते, तो तुम्हारा क्या हाल होता।' ज्ञानी लोग हर बात को सहजता से लेते हैं। नचिकेता ने सोचा, आज मैं कम-से-कम इस योग्य तो हुआ कि किसी के काम आ रहा हूँ। पिता के वचन को पूरा करने के लिए यमलोक जाना कोई साधारण बात नहीं है। यही तो मौका है कि मैं सशरीर यमलोक जा सकता हूँ। यहाँ से जाना तो पड़ेगा ही। आखिर धर्म का मार्ग कुर्बानी का मार्ग ही तो है । यहाँ तो जो सब-कुछ छोड़ने को तैयार हो सकता है, वही सब-कुछ पाने का अधिकारी हो सकता है। सांसारिक सुखों की कुर्बानी दिए बिना स्वर्ग का आनन्द नहीं मिल सकता। एक बार देवताओं तथा दानवों में युद्ध चला। दानव भारी पड़ने लगे और देवता हारने लगे, तो वे ब्रह्माजी के पास गए। कहने लगे, 'प्रभु, अब आप ही कोई उपाय बताइए।' उन्होंने कहा कि ऐसा आदमी ढूँढो, जो अपनी देह का दान कर सके। उसकी हड्डियों से वज्र बनाकर दानवों से युद्ध करें, आपकी जीत होगी। देवराज इन्द्र बड़े प्रसन्न हुए। लेकिन सवाल फिर उठा, ऐसा व्यक्ति कहाँ तलाशें? ब्रह्माजी उन्हें सुझाते हैं कि एक ऋषि हैं दधीचि। वे आपकी मदद कर सकते हैं। सब मिलकर दधीचि के पास गए। वे वर्षों से तपस्या करते हुए कृषकाय हो चुके थे। उन्होंने देवताओं के अनुरोध पर जगत् के हित में अपनी देह का त्याग किया और तब उनकी हड्डियों से वज्र बनाया गया। उससे दानवों का नाश हुआ। दधीचि ने इस पुनीत कार्य से संदेश दिया कि शरीर तो मरणधर्मा है।शरीर किसी के काम आता है, तो इससे अच्छा उसका और क्या उपयोग होगा! इसीलिए कहता हूँ, जितना हो सके किसी के काम आएँ। रक्तदान करें, नेत्रदान करें। आपके खून की कुछ बूंदें किसी का जीवन बचा सकती हैं। इस तरह के दान के लिए हर किसी को आगे आना चाहिए। दधीचि ने अपने-आप को ही दे डाला। धर्म भी कुर्बानी चाहता है। हमें ज़रूरत पड़ने पर इसके लिए तैयार रहना चाहिए। कसौटी पर कसने से ही पता चलता है कि सोना असली है या नकली। परखना तो पड़ेगा ही। मित्रों को भी समय-समय पर परखते रहना चाहिए। मित्रता की कसौटी यही है कि मित्र आपकी परख पर कितना खरा उतरता है। अपने किसी मित्र को परखना हो, तो उससे कोई रकम माँग कर देखना; हाँ उसके पास इतनी राशि होनी चाहिए कि वह दे सके। उसका उत्तर ही बता देगा कि वह आपका मित्र है या नहीं। गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले मित्र नहीं हुआ करते। जो वक्त पर काम आ जाए, वही मित्र हैं । कुर्बानी से, त्याग से ही तो पता चलेगा कि कौन तुम्हारे लिए क्या कर सकता है। मामला चाहे धर्म का हो या देश का, कुर्बानी और समर्पण-भाव ही उसकी आत्मा बन सकते हैं। 44 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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