SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमें सीख मिलती है कि गुस्से में हमारे द्वारा कहे गए अवांछित शब्द भारी हानि का कारण बन सकते हैं। गुस्सा शांत होने पर हम पूरे घटनाक्रम पर सोचेंगे, तो लगेगा कि हमारे द्वारा ऐसे शब्द कैसे कहे गए।क्रोध की समाप्ति हमेशा प्रायश्चित में होती है। तब मनुष्य सोचने लगता है, अरे, मैं ऐसा कैसे कह पाया? लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है; नुकसान तो हो ही चुका होता है। ऐसे लोगों के लिए ही तो कहा जाता है कि अब पछताए होत क्या जब चिड़ियाँ चुग गई खेत। नचिकेता पिता के मुंह से निकले शब्द सुनकर एक बारगी तो स्तब्ध रह गए। किसी भी पिता को अपने पुत्र को डाँटने का अधिकार है, लेकिन कोई भी पिता अपने पुत्र का बुरा नहीं चाह सकता। और ऐसा बुरा तो कतई नहीं चाहेगा कि पुत्र को मौत को ही दे दे। उद्दालक ने यह क्या किया? पुत्र को मृत्यु को दान में दे दिया। नचिकेता ने खूब विचार किया और फैसला किया कि लोगों के बीच कहे गए पिता के शब्दों की आन रखना उसका धर्म है । वह मृत्यु का वरण करेगा। दशरथ ने वचन तो अपनी एक रानी को दिया था, लेकिन उस वचन का मान उनके पुत्र राम ने रखा। राम चाहते तो वन जाने से इनकार कर सकते थे, लेकिन राम इसीलिए तो मर्यादा-पुरुषोतम कहलाए कि पिता ने जो कहा, उसका मान रखा और निकल पड़े चौदह वर्ष के वनवास पर। राम वही कहलाते हैं जो वचन की आन रखते हैं। नचिकेता ने भी तय किया, जो भी हो जाए, पिता का वचन निभाना है। वे निकल पड़े घर से। जंगल में एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए। विचार करने लगे, आखिर पिता ने उन्हें मृत्यु को दान में दिया है, तो इसमें कुछ-न-कुछ गूढ़ बात अवश्य छिपी है। जो होता है, अच्छे के लिए होता है। भला यम को मुझसे कौन-सा काम होगा। पिता ने कुछ कहा है, तो ज़रूर कोई बात है। महाराज दशरथ ने रानी को वचन दिया था, तो उसमें बहुत बड़ा दर्शन छिपा था। जाने कितने राक्षसों का उद्धार करना था। शबरी की श्रद्धा को महाफल देना था। अहिल्या को श्राप-मुक्त करना था। रावण जैसे योद्धा का अंत भी राम के हाथों होना नियती का हिस्सा ही था। इसलिए जो कुछ कहा गया, उसका भवितव्य था। जो तय है, वह होना है; उसके लिए ही यह मार्ग बना है। ज्ञानी लोग हर पीड़ा में आनन्द ढूँढ लेते हैं । यही तो उनके ज्ञानी होने का सार है। एक बार ऐसा हुआ कि साइकिल पर जा रहा एक आदमी पैदल चल रहे किसी राहगीर से टकरा गया। दोनों गिर पड़े। राहगीर चिल्लाने लगा, नाराज़ होने लगा। साइकिल चलाने वाले ने कहा, 'खैर मनाओ भाई, जो मेरी साइकिल से टकराने के बाद भी जीवित हो। जाकर हनुमानजी को सवा पाँच रुपए का प्रसाद चढ़ाओ।' राहगीर ने आश्चर्य जताते हुए कहा, 'एक तो मुझे गिरा दिया, ऊपर से खैर मनाने को कह रहे हो, प्रसाद चढ़ाने को उकसा रहे हो, भला ये क्या बात हुई ?' साइकिल वाले ने उसे 43 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy