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जीवन में अधिकांश काम ऐसे होते हैं जिन्हें बहुत सोच-समझकर करना चाहिए। क्रोध भी उनमें से एक है। कोई शराब पी ले, तो उसे होश कहाँ रहता है । क्रोध करने वाले को भी होश नहीं रहता । क्रोध जिसे भी आएगा, उसका होश पिछले दरवाजे से भाग जाएगा। वह अपनी मर्यादा भूल जाएगा। क्रोध में रावण ने अपने भाई विभीषण को घर से निकाल दिया। परिणाम यह हुआ कि उसे राम के हाथों मरना पड़ा। उसने भाई को घर से निकालकर अपने सर्वनाश को आमंत्रण दे दिया था। अगर रावण अपने घमंड और गुस्से को जीतना जानता होता, तो रामजी तो क्या, दुनिया में किसी की ताकत नहीं थी जो रावण को उड़ा सके। कोई यह मत समझना कि रामजी ने ब्रह्मास्त्र से रावण को मारा होगा। राम तो निमित्त मात्र हैं । रावण की असली मृत्यु तो उसी दिन ही हो गई थी, जिस दिन उसने घमंड में आकर सती का हरण किया, गुस्से में आकर मर्यादा पुरुषोत्तम की खिल्लीयाँ उड़ाईं । रावण में अगर विनम्रता का एक ही गुण आ जाता, गुणीजनों का सम्मान करने का अगर यही एक सद्भाव पैदा हो जाता, तो आज दुनिया में रावण के पुतले नहीं जलते; राम की तरह रावण की भी इज़्ज़त होती। दुनिया में कोई दूसरा किसी को नहीं मारता, आदमी अपने खोटे कामों के चलते मौत को दावत देता है। माना कि हमसे मोह-ममता नहीं छूटती, पर गुस्सा और गाली तो छोड़ी जा सकती है ।
बादशाह हारून रशीद की कहानी हमें कुछ सीख देती है । कहते हैं, वे दरबार लगाए बैठे थे। सहसा उनका पुत्र वहाँ आया। कहने लगा, 'मुझे अमुक सेनानायक ने अपशब्द कहे, उसे दण्ड दिया जाए।' दरबार में सन्नाटा छा गया । बादशाह ने सभासदों पर नजर डाली। उनकी आँखों में प्रश्न था कि क्या किया जाए ? एक सभापति खड़ा हुआ और कहने लगा, ‘जिसने राजकुमार को अपशब्द कहे हैं, उसे फाँसी दे दी जाए। दूसरे ने कहा, 'ऐसे गुस्ताख की ज़ुबान काट ली जाए।' तीसरे ने कहा, 'उसे हाथी के पांव के नीचे कुचलवा दिया जाए।' बादशाह ने सबकी सुनी और कुछ देर बाद उन्होंने राजकुमार से कहा, ‘जिसने तुम्हें अपशब्द कहे हैं, तुम उसे माफ कर सको, तो बहुत बड़ी बात होगी। ऐसा नहीं कर सकते तो जाओ, तुम भी उसे वही अपशब्द कह आओ, बात बराबर हो जाएगी। पर ये विचार कर लेना कि क्या गाली निकालना तुम्हें शोभा देगा ?'
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गुस्से का निमित्त उपस्थित हो जाने पर भी खुद को शांत रखना, यही जीवन की सफलता है । लोग तभी तक शांत रह सकते हैं, जब तक अशांति का निमित्त नहीं बनता । अशांति का निमित्त बन जाने पर भी कोई शांत रहता है, तो सचमुच वह संत है । रावण ने क्रोध किया, तो उसे उसका परिणाम भुगतना पड़ा। कंस ने क्रोध किया, तो उसे श्रीकृष्ण के हाथों मरना पड़ा । उद्दालक ने गुस्सा किया, तो उनके मुँह से स्वयं के ही पुत्र के लिए यह शब्द निकले, 'जा मैं तुझे मृत्यु को दान देता हूँ ।'
एक आदमी को गुस्सा आने पर वह गाली देता है, एक आदमी मारपीट करता है । उद्दालक को गुस्सा आया, तो उन्होंने अपने पुत्र को मौत के मुँह में धकेल दिया । इससे
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