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मौत पहले तो राजा की नादानी पर हँसी। फिर उसने कहा, 'तुम्हारे बदले तुम्हारे घर का कोई और व्यक्ति अपनी आयु दे दे, तो मैं उसका यौवन तुम्हें दे सकती हूँ।' ययाति ने इधर-उधर देखा, कोई तैयार न हुआ।अचानक उनका सबसे छोटा पुत्र उठा और कहने लगा, 'मैं अपनी आयु देता हूँ। यदि मेरा जीवन दान करने से मेरे पिता की उम्र में बढ़ोतरी होती है, तो मेरे लिए इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा ! एक पुत्र के जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह अपने माता-पिता के काम आए।'
श्रवणकुमार को लोग आज भी याद करते हैं। आप यदि दशरथ हैं, तो यह कोई उल्लेखनीय बात नहीं है, पर यदि आप राम हैं, तो यह अवश्य इतिहास में दोहराने जैसी बात हुई। श्रवणकुमार नेत्रहीन माता-पिता को कंधे पर बिठाकर तीर्थ-यात्रा पर निकलते हैं। राह में एक जगह उन्हें प्यास लगती है। श्रवणकुमार पानी लेने जाता है। श्रवणकुमार दशरथ के तीर का शिकार हो जाता है। वह प्राण छोड़ते-छोड़ते महाराज दशरथ से आग्रह करता है कि वे उसके प्यासे माता-पिता तक पानी का यह लोटा पहुँचा दें। मैं अपने माता-पिता को अड़सठ तीर्थों की यात्रा तो पूरी नहीं करवा पाया, पर उन्हें प्यासा छोड़कर जाना मेरी आत्मा को गवारा नहीं। ऐसे होते हैं पुत्र।
नचिकेता भी ऐसे ही थे, उन्होंने पिता से कहा, 'आप मुझे सर्वश्रेष्ठ मानते हैं तो मेरा भी दान कर दें। यह भी बता दें कि मुझे आप किसको दान में देंगे?' पिता आवेश में आ गए और कहने लगे, 'जा मैं तुझे मृत्यु को देता हूँ, यमराज को देता हूँ।' किसी भी पिता के मुख से अपने पुत्र के प्रति कल्याणकारी शब्द ही निकलते हैं। लेकिन यहाँ कुछ विपरीत बात हो गई। पिता सब कुछ सहन कर लेता है, लेकिन पुत्र द्वारा दिए गए उपदेश को स्वीकार नहीं करता। उनके अभिमान को ठेस लगती है।
ऐसा न करें। अपने-आप को जीवन-भर विद्यार्थी बनाकर रखेंगे तो सीखेंगे। दुश्मन से भी सीख मिले, तो स्वीकार करनी चाहिए। राम ने रावण के अंत-समय में लक्ष्मण को उनके पास ज्ञान लेने भेजा था। ज्ञान किसी छोटे बच्चे से भी मिले तो ले लेना; इनकार मत करना। हर स्थान पर गुरु मिल जाएँगे; बस अपने भीतर शिष्य बनने की कला को जिंदा रखना । अंग्रेजी की एक प्यारी-सी कहावत है : 'व्हन स्टुडेन्ट इज़ रेडी, टीचर विल कम' जब तुम सीखने को तैयार होते हो, तभी जीवन में शिक्षक का आगमन होता है।
पत्र ने पूछ ही लिया कि आप मुझे किसको दान में देंगे? उद्दालक ने भी आवेश में कह दिया, 'जा मैंने तुझे यमराज को दान दिया।' पिता को क्रोध में देखकर भी नचिकेता शांत रहा। क्रोध में व्यक्ति अपना तो नुकसान करेगा ही, दूसरों का भी नुकसान करेगा। क्रोध बड़ा हरामी है। वह समुद्र की तरह बहरा होता है। उसके कान नहीं होते, केवल ज़ुबान होती है। गुस्सा केवल बोलता है, सुनता कुछ नहीं। एक बार का गुस्सा जिंदगी भर का ज़ख्म दे जाता है।
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