________________
-
- 2 धर्म के महत्वपूर्ण चरण:
यज्ञ और दान
कठोपनिषद् एक ऐसा उपनिषद् है जिसे कि हम दूसरों शब्दों में अध्यात्म-उपनिषद् कहेंगे। अध्यात्म-उपनिषद् इसलिए, क्योंकि इसमें शुरू से लेकर अंत तक, सीढ़ी से लेकर शिखर तक, मार्ग से लेकर मंज़िल तक एक ही बिन्द की चर्चा की गई है और वह है मानवजाति की आध्यात्मिक उन्नति। हक़ीक़त में किसी भी इंसान की मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उसे ऐसी पूँजी मिलनी चाहिए जिसके बलबूते पर वह साधारण से ऊपर उठकर असाधारण चेतना का मालिक बने।
भगवान महावीर का एक पवित्र शास्त्र है आचारांग सूत्र। इस सूत्र की शुरुआत अध्यात्म की प्यास के साथ की गई है। इसका पहला अध्याय जिज्ञासा का अध्याय है। इंसान की सोई हुई मुमुक्षा को जगाने का अध्याय है। महावीर कहते हैं कि व्यक्ति यह नहीं जानता कि वह कौन है। वह यह भी नहीं जानता कि वह कहाँ से आया है और उसे यह भी नहीं पता कि वह यहाँ से कहाँ जाएगा। जानने के नाम पर, अपने परिचय के नाम पर वह इतना-सा ही जानता है कि वह अमुक का पुत्र है, अमुक मोहल्ले में रहता है, अमुक गाँव में वह जन्मा है। अमुक उसके भाई-बहिन हैं। उसे जो जानकारी है, वह बहुत स्थूल है। हमें सब कुछ ऊपरऊपर की जानकारी है। हमें यह जानकारी नहीं है कि हम माँ के पेट में कहाँ से आए, हमें यह भी जानकारी नहीं है कि शरीर की मृत्यु के बाद हम कहाँ जाएँगे।
जीवन एक सनातन धारा है। संसार की नदिया में बहता पानी है। हमारी नज़रों के सामने जितना पानी आया, उतना ही पानी नहीं होता वरन् एक अखण्ड धारा चलती रहती है पानी की। आँखों के सामने से जो निकल गया, वह भी पानी ही है। जो आँखों के सामने है, वह भी पानी है और जो आँखों के करीब नहीं
24
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org