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दुष्प्रभाव क्या हो सकता है? अपने आपसे प्रश्न करेंगे, तो जवाब भी सही मिलेंगे; दिल से जवाब मिलेंगे। जवाब मिलेगा कि क्रोध करने से कोई लाभ नहीं है तो क्रोध करूँ ही क्यों? बस, आप क्रोध करने से बच जाएँगे।
मन पर विवेक रूपी सारथी का अंकुश रहेगा, तो हम अपने दुर्गुणों पर अंकुश लगा पाएँगे। बार-बार अपना मूल्यांकन करते रहें। रोज-रोज मंदिर जा रहे हो, परिणाम नहीं मिल रहा, तो विचार करो, कहाँ चूक हो रही है? मन की कौन-सी गतिविधि सही नहीं हो रही ? निरंतर मूल्यांकन से जीवन को सही रास्ते पर लाने में मदद मिलती है। कोई भी काम कर रहे हैं और उसका परिणाम क्या निकल रहा है- इस पर भी विचार करते रहें। हम मन के राजा कैसे बन सकते हैं. इस पर भी विचार करते रहें।
___ एक व्यक्ति गुरु के पास गया। उनसे पूछने लगा, 'गुरुजी, मन को शुद्ध करना है, कैसे करूँ?' मन की शुद्धि, आत्म-शुद्धि की बात सुनकर गुरु हँस पड़े। उन्होंने कहा, 'जा मैं तुझे आशीर्वाद देता हूँ, तू अंधा हो जा, बहरा हो जा, गूंगा हो जा, तेरा मन शुद्ध हो जाएगा।' शिष्य ने पूछ लिया, 'ये आपने कैसा आशीर्वाद दिया, ये तो श्राप हैं।' गुरु ने उसे समझाया, 'भले आदमी इस श्राप में ही तेरे लिए आशीर्वाद छिपा है। तू अंधा हो जा, इसका अर्थ यह है कि पराई नारी को मत देख। बहरा हो जा, इसका अर्थ है, दूसरों की बुराई मत सुन, अपनी प्रशंसा मत सुन। गूंगा हो जा, इसका अर्थ यह है कि किसी को बुरा मत बोल। इन तीनों बातों पर अमल कर लेगा, तो तेरा मन शुद्ध हो जाएगा। तेरे चित्त की चिंताएँ दूर हो जाएँगी। तेरे भीतर अहंकार को सिर उठाने का अवसर नहीं मिलेगा। मन के विकारों पर विजय पा लेंगे, तो मृत्यु आएगी तब भी हमें कोई परेशानी नहीं होगी। हम यही कहेंगे-मृत्यु आओ, तुम्हारा स्वागत है।' मन की ये तमाम दशाएँ हमें जीवन को सफल बनाने में मदद करेंगी।
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