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-21 कठोपनिषद् का
सार-संक्षेप
बास दिन से हम लोग कठोपनिषद् की अध्यात्म गंगा में उतरते रहे हैं, आनन्द लेते रहे हैं। हमने न केवल अध्यात्म की गंगा में उतरने का प्रयत्न किया और इसका आनन्द लिया, अपितु जी-भर डुबकियाँ लगाते हुए स्नान भी किया है और इस गंगा का गंगोदक की तरह आचमन भी किया है। मैं सभी का हृदय से आभारी हूँ। आप सभी का अभिनन्दन करता हूँ कि आप सभी ने दत्त चित्त होकर कठोपनिषद् के सूत्र-दर-सूत्र ज्ञान को इस तरह पीने का प्रयास किया मानो ये सूत्र नहीं, कोई महामंत्र हों। महान् शास्त्रों की बातें किसी महामंत्र की तरह ही हुआ करती हैं। जिस प्रकार मंत्र अपनी चमत्कारिक शक्तियों द्वारा उसका उच्चारण या जाप करने वाले का भला किया करते हैं, उसी तरह महान शास्त्रों की बातें इंसान के कल्याण के लिए ही हुआ करती हैं।
दुनिया में किताबें अनगिनत हैं। किताबें मनुष्य की सबसे अच्छी दोस्त हुआ करती हैं। परन्तु हम कठोपनिषद् की बात करें, तो यह सारी किताबों की किताब है। इसमें दिया गया हर सूत्र अध्यात्म रूपी ख़ज़ाने की चाबी है, अध्यात्म की कुंजी है। जब भी कठोपनिषद् जैसे शास्त्रों की चर्चा करते हैं, तो केवल वह किताब नहीं होती। उसमें जिन महापुरुषों की चर्चा की गई है, वे हमारे सामने साकार हो जाया करते हैं। रामायण पढ़ते हैं, तो उसके पात्र हमारी आँखों के सामने आ खड़े होते हैं, हमसे आत्म-संवाद करने लगते हैं। गीता पढ़ते हैं, तो साक्षात् कृष्ण और अर्जुन हमारे समक्ष आ जाते हैं। मानो कृष्ण हम सब अर्जुनों को जीवन के कल्याण के लिए, संघर्षों पर विजय पाने के लिए हमारा उत्साहवर्द्धन कर रहे हैं। हमारी श्वास-श्वास में विश्वास भर रहे हैं।
हम जब आगम पढ़ते हैं, तो स्वयं महावीर और धम्मपद पढ़ते हैं, तो स्वयं बुद्ध सामने उपस्थित हो जाते हैं। ये सभी मानो कुछ ऐसी बातें कह रहे हैं जिनसे हमारी मूर्च्छित चेतना जागृत हो सके। हम जब कठोपनिषद् पढ़ते हैं और इसके सूत्रों के भीतर
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