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आत्म-साक्षात्कार के लिए क्या करें?
आज की बात को सरल तरीके से समझने के लिए छोटे-से प्रसंग से चर्चा की शुरुआत करेंगे। एक अधिसम्पन्न व्यापारी था। उसके पास अथाह पैसा था। खुद उसे भी पता नहीं था कि उसके पास कितनी सम्पत्ति हो गई है। सब-कुछ होने के बावजूद उसके मन में शांति और जिंदगी में सुकून नहीं था। वह अपने अतंर्मन की समस्या के समाधान की चाह में एक संत के पास पहुँचा। संत उस समय प्रवचन दे रहे थे। संतमहात्मा ने प्रवचन में इस बात पर जोर दिया कि परमात्मा की तलाश करें, उनकी प्राप्ति से ही आत्मा की शांति मिलेगी। इस प्रकार संत से प्रेरणा पाकर व्यापारी ईश्वर की तलाश में निकल पड़ा। कई वर्ष तक भटकने के बाद एक दिन वह व्यापारी एक गाँव में पहुँचा। वहाँ उसने देखा कि गाँव के प्रवेश से पूर्व ही जंगल में एक संत बैठे प्रवचन दे रहे हैं। बहुत से ग्रामीण वहाँ आए हुए हैं। कुछ देर तक वह संत को देखता रहा । एकाएक उसे याद आया कि ये तो वही संत हैं जिन्होंने उसे कई साल पहले कहा था कि शांति और सुकून चाहिए तो परमात्मा की तलाश करो। वह संत के चरणों में गिर पड़ा। उसने संत से कहा, 'बहत भटक लिया, मुझे तो परमात्मा कहीं नहीं मिले; अब मैं क्या करूँ?' संत मुस्कुराए, कहने लगे, 'परमात्मा कहीं बाहर नहीं मिला करता, तुम उसे यहाँ-वहाँ ढूँढ रहे हो। परमात्मा बाहरी स्थलों पर नहीं मिलेंगे, वे तो तुम्हारे भीतर ही है, वहाँ उतरो और परमात्मा को प्राप्त कर लो।'
यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए बुनियादी बात है। हरेक को यह बात समझ में आ जानी चाहिए कि हमारी सारी समस्याओं का समाधान ईश्वर के जरिए हो सकता है, लेकिन परमात्मा कहीं और नहीं, हमारे भीतर ही मौजूद हैं। मंदिरों में जाकर प्रार्थना करना बुरा नहीं है। वहाँ जाने में कोई घाटा नहीं है, लेकिन परमात्मा वहाँ प्रतिष्ठित प्रतिमाओं में नहीं, तुम्हारे स्वयं के भीतर ही है। प्रभु का निवास मनुष्य के हृदय में है। जब भी प्रार्थना करनी हो, प्रभु से बातचीत करनी हो, प्रभु को अपनी ओर आकर्षित करना हो, उन्हें अपनी प्रार्थना समर्पित करनी हो-तो सबसे पहले अपने-आप से
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