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बाद भी अनासक्तिपूर्वक जीओ, अपने भीतर मोक्ष की मुमुक्षा पैदा करो कि मुझे मुक्त होना है, भीतर जागरूकता पैदा करो। पुनः पुनः जन्म-मरण की प्रक्रिया से नहीं गुजरेंगे, ऐसा विचार मन में आते ही बदलाव की शुरुआत हो जाएगी। ज़रा विचार करो, कब तक यूँ ही जन्मते और मरते रहोगे ? कब तक क्रोध, कषाय से संलिप्त रहोगे ? चंडकौशिक को भगवान महावीर ने एक ही संदेश दिया - बुज्झ । अपने क्रोध को बुझा दो । यही संदेश मैं आपको देना चाहता हूँ । कब तक गुस्सा करोगे ? बहुत हो गया, प्रशंसा खूब प्राप्त कर ली । अब तो लौट चलो। खुद पर नियंत्रण करो। कब तक भेजा लड़ाते रहोगे ? रोज-रोज का छातीकूटा तो मिटे ।
इसलिए भीतर मुमुक्षा होनी चाहिए, मोक्ष की गहरी तमन्ना होनी चाहिए । शुरुआत हो गई, तो आज नहीं तो कल मोक्ष के मार्ग की तरफ बढ़ते चले जाओगे। सबकुछ धीरे-धीरे होता है। माना बहुत अंधेरा है, लेकिन अपने भीतर ज्ञान का दीपक जला लोगे, तो रोशनी हो जाएगी। मुमुक्षा का संकल्प ले लोगे, तो रोशनी मिलेगी। चिंतन 'बनाए रखोगे, तो बात बनती चली जाएगी, क्रांति घटित होती चली जाएगी, चेतना जग जाएगी। व्यक्ति की चेतना में बदलाव आएगा ही, उसे कोई नहीं रोक सकता ! धैर्य रखो, जीवन के सारे काम जागरूकतापूर्वक करते जाओ। मंदिर तो खूब जाकर आ गए. मंत्र भी खूब बोल लिए, अब तो मौन हो जाओ। संकल्प करो कि जी रहा हूँ, जितने संस्कार व कर्म हैं, उन्हें जीतने का प्रयास कर रहा हूँ । विचार के साथ ही उन्हें कर्म का जामा पहनाना होगा; केवल विचार से या सोचने से कुछ नहीं होने वाला । भटके तो हैं ही राह पर आने का प्रयत्न प्रारम्भ कर देंगे, तो अपने-आप बदलाव शुरू हो जाएगा। संस्कारों की, कर्मों की बेड़ियाँ अपने आप कटती चली जाएँगी। खुद पर विजय पाने का प्रयास करो। हार गए तो बड़ी बात नहीं है, जीत गए तो बड़ी बात होगी। मौन का उपयोग करो, उदारता बरतो, अपने आपको जितना बेहतर बना सकते हो, बनाने में जुट जाओ । शिखर पर चढ़ने के प्रयास में गिर भी गए, तो परवाह नहीं । आपने उस दृढ़ निश्चयी चींटी की कहानी तो सुनी ही होगी। निन्यानवे बार नीचे गिरने के बाद आखिर सौवीं बार चींटी ऊपर चढ़ने में कामयाब हो ही गई। प्रयत्न करोगे तो परिणाम मिलेगा ही, इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है। प्रयास करते रहोगे तो नित्य तक भले ही न पहुँच पाओ, अनित्य तक तो पहुँच ही जाओगे और यही असली पहुँचना होगा।
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