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________________ अपने-आप से पूछें कि हम कौन हैं, कहाँ से आए हैं, कहाँ जाएँगे ? गुरुजनों से पूछोगे, तो वे तुम्हें इसका शाब्दिक सत्य ही बता पाएँगे। वास्तविक सत्य तो तभी मिलेगा, जब हम खुद से पूछेंगे - जीवड़ा ! तू कौन है ? जन्म से पहले तू क्या था, मृत्यु के बाद तू कौन होगा ? यह जीव आखिर है कौन ? कभी यह पिता है, तो कभी पुत्र है। कभी भाई कहलाता है, तो कभी बहिन बन जाता है। ये सब ऊपर के आरोपण हैं । सोने के सौ तरह के गहने बन जाने से सोना कोई बदलता तो नहीं है । प्रश्न अपने-आप से करो। जब तक कोई व्यक्ति अपने-आप से समाधान नहीं चाहेगा, सारे समाधान अधूरे कहलाएँगे। प्रश्न अपने-आप से करो, एकांत में बैठो और खुद से पूछो, मैं कौन हूँ? नचिकेता यमराज से पूछ रहे हैं । यह तो नचिकेता को एक ऐसा अवसर मिल गया कि वे यमराज के सम्मुख पहुँच पाए, वरना एक बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी समस्याओं के समाधान अपने-आप में ही ढूँढ़ने चाहिए। तुम खुद अपने आप से जुदा कहाँ हो। एक झेन कहानी है, एक व्यक्ति मठ में पहुँचा । वहाँ जाकर वह गुरु से सवाल पूछने लगा, बताइए, मैं कौन हूँ? गुरु ने उसे एक लात मारी और वहाँ से निकाल दिया । वह बड़े गुरु के पास गया। उनसे शिकायत करने लगा, आपका शिष्य कैसा बदतमीज़ मैं उनसे ज्ञान प्राप्त करने गया था, मैंने उनसे इतना ही पूछा था, बताइए - मैं कौन हूँ ? उन्होंने मुझे लात मारकर वहाँ से निकाल दिया। बड़े गुरु ने उसे पहले से भी जोरदार लात मारी और फिर उसे अपने पास बिठाकर कहने लगे, पहली लात तो तुझे इसलिए पड़ी कि तूने इस तरह का सवाल गुरु से किया। दूसरी लात इसलिए मारी कि तू पहली लात मारने का मतलब नहीं समझा। वत्स, अध्यात्म का ज्ञान दूसरों से नहीं मिला करता, उसे अपने भीतर ही खोजना पड़ता है । जो सवाल अपने-आप से करना चाहिए अगर वह सवाल दूसरों से करोगे, तो लात नहीं तो क्या अभिनंदन-पत्र मिलेगा । मैं कौन हूँ, इसका ज्ञान प्राप्त करना है तो जाओ, एकांत में बैठो। किसी नदी के तट पर बैठो। ध्यान में उतरो । अपने भीतर स्वयं से पूछो, 'मैं कौन हूँ?' वहाँ से ही तुम्हें उत्तर मिलेगा। प्रश्न को सरल होने दो। मैं कौन हूँ की जिज्ञासा को ठेठ अंत:करण से उठने दो। ख़ुद की अंतरात्मा से जवाब उठने दो। जब तक अर्जुन पैदा नहीं होगा, तब तक कृष्ण की गीता कैसे साकार हो पाएगी ? मैं कौन हूँ - इस वाक्य को किसी मंत्र की तरह भीतर गूँजने दो। इसी से अध्यात्म का जन्म होगा । अच्छा होगा कभी श्मशान में भी जाओ। वहाँ जलती हुई लाशों को देखो। पल भर में ही यह बोध हो जाएगा कि आप वास्तव में कौन हैं ? शरीर हैं या आत्मा ? धीरे-धीरे आपको शरीर की नश्वरता का ज्ञान होगा। फिर आत्म-तत्त्व तक पहुँच सकोगे । शरीर का अहसास समाप्त होने लगेगा। ध्यान करने बैठोगे तो धीरे-धीरे मन-वचन-काया Jain Education International 195 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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