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हैं ? उन्हें बताया गया कि ताऊजी की मृत्यु हो गई है। जब उन्हें अंतिम संस्कार के लिए अर्थी पर लिटाया जा रहा था तो बालक ने फिर पूछा, ये क्या कर रहे हैं ? पिता ने उन्हें बताया कि मरने के बाद शरीर को इसी तरह ले जाते हैं । श्मशान में शव को जलता देख बालक राजचन्द्र ने फिर सवाल पूछा। उन्हें बताया गया कि सबके साथ ऐसा होता है। वह अवाक् रह गया। क्या मेरे साथ भी ऐसा होगा? शव जलते देख उन्हें आत्म-ज्ञान हुआ और पूर्व जन्म की स्मृतियाँ जाग्रत हो उठीं? वे विचार करने लगे-ओह, यह है जीवन की नश्वरता। पिछले जन्म में भी मैं पैदा हुआ था और एक दिन मुझे मरना पड़ा। मेरे शरीर को जला दिया गया। क्या इस जन्म में भी यही होगा? एक घटना ने उनका जीवन बदल दिया। चिता किसी और की जलती है और चेतना किसी और की जगती है। महावीर भी ऐसे ही जगे थे। बुद्ध भी इसी तरह आत्म-जागृत हुए। यह तो कोई आत्म-ज्ञानी ही होता है, जो आत्म-ज्ञान के मर्म को समझ लेता है, मृत्यु के रहस्य को समझ लेता है और अपने जीवन में ही अध्यात्म को उपलब्ध कर लेता है।
राजचन्द्र ने तब शरीर की नश्वरता को देखा और इस बात को समझ लिया कि यह उनके ताऊजी का नहीं, स्वयं राजचन्द्र का ही शरीर जल रहा है। जब भी कोई साधक अपने शरीर में मृत्यु का ध्यान करता है, श्मशान का ध्यान करता है, अपने भीतर भाव-अग्नि को प्रज्वलित करता है, तब-तब वह किसी अन्य के शरीर को जलता देखकर अपने को ही जलता महसूस करता है। आख़िर अध्यात्म क्या है ? मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, कहाँ जाऊँगा?-इन सवालों में ही अध्यात्म की आत्मा छिपी हुई है।
श्रीमद राजचन्द्र के भीतर भी यही सवाल उठते हैं। तब श्रीमद् राजचन्द्र के भीतर कुछ अद्भुत पद साकार होते हैं - हूँ कौण छू, स्याँ थी थयो, यूँ स्वरूप छै म्हारो खरो। कोना संबंधे वलगणुं छै, राखू के हूँ परिहरूं.... मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मेरा वास्तविक स्वरूप क्या है ? मुझे किन-किन संबंधों को जोड़कर रखना है और किनसे छुटकारा पाना है ? इन सबका भली-भाँति चिंतन कर लेना चाहिए। इस बिन्दु पर निर्णय कर लिया जाना चाहिए। तभी राजचन्द्र जैसा कोई बालक कम उम्र में ही आत्म-साधना के पवित्र पथ पर निकल पड़ता है।
कोई भी व्यक्ति अपनी नश्वरता का ध्यान रखेगा, तो उसे जीवन की अनश्वरता का बोध होगा। अनश्वरता का बोध हमेशा नश्वरता को ध्यान में रखने पर ही हो सकता है। शरीर पर नहीं, शरीर के परिणामों पर गौर करो। केवल भोजन के स्वाद पर नहीं, भोजन के परिणामों पर गौर किया जाए। जीवन में आध्यात्मिक और अनासक्ति के फूल तभी खिलते हैं, जब हम परिणामों पर गौर करते हैं। भोजन करने से आज तक कोई आसक्ति-मुक्त नहीं हुआ। भोगों का उपभोग करने से कोई तृप्त नहीं हुआ। तृप्ति का महान् परिणाम तभी घटित होगा, जब हम भोगों के परिणामों पर ध्यान देंगे। जिन्हें आप
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