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उसने उस टब में जो कुछ रखा, उसे अगले दिन सौ गुना मिला। उसका ऐश्वर्य बढ़ गया।खबर फैली, तो गाँव के जमींदार को पता चला। उसने किसान को धमका कर टब ले लिया। अब ऐश्वर्य बढ़ने की बारी जमींदार की थी। होते, होते खबर वहाँ के राजा तक पहुँच गई। राजा को उस पर यकीन न था। उन्होंने एक मोती टब में डाला। टब ने अगले दिन सौ मोती लौटाए। राजा ने एक प्रयोग किया, अगले दिन खुद ही टब में बैठ गया। दूसरे दिन टब में से एक-एक कर सौ राजा निकल आए। सारे राजाओं के बीच संघर्ष छिड़ गया और एक-एक कर सारे राजा मारे गए। सिंहासन वहीं रह गया। सब कुछ पाने की चाह में कुछ भी नहीं रहा। यह लालच ही तो मन का पागलपन है, जो समझ ले, ज्ञान उसी का हो जाता है, वही ज्ञानी कहलाता है। यदि हम लोग ओम् का जाप करते हैं, मन से करते हैं, तो मन की विक्षिप्तताएँ अवश्य ही कम होंगी।
__ मैंने संन्यास लिया। आज 27-28 साल हो गए। करोड़ों रुपए मेरी प्रेरणा से खर्च हो गए। कहाँ से आए, कहाँ खर्च हुए आज तक पता नहीं। धन के प्रति मोह नहीं रखा। धन बुरा नहीं है, धन के प्रति मोह का जगना बुरा है। धन के प्रति आसक्ति नहीं हुई, इसीलिए परमार्थ के काम में करोड़ों रुपए खर्च हो गए और एक का भी पता नहीं कहाँ से आए। स्वयं को धन से मत जोड़ो, धर्म से जोड़ो। अगला तो देकर तिर जाएगा, तुम लेकर कहाँ-कहाँ डूबोगे?
इसलिए धन की बजाय, धर्म को महत्त्व दिया जाए। ओम् का स्मरण हमें इन सारी अपेक्षाओं, लालसाओं से ऊपर उठाता है । पराशक्ति की अनुकम्पा, आशीर्वाद हम पर निश्चित तौर पर बरसा करता है। कठोपनिषद् में यमराज ने नचिकेता को ओम् के माध्यम से मार्गदर्शन दिया है। हम भी इस मार्गदर्शन की राह पर चलकर अपना जीवन धन्य कर सकते हैं। हम सब नचिकेता ही तो हैं। यमराज से जीवन के अध्यात्म के रहस्य को समझने का प्रयास कर रहे हैं। धीरे-धीरे सब बदल जाएगा। अंतर्मन मैला होगा, तो उसकी भी सफाई हो जाएगी। रोशनी करीब है। अध्यात्म की रोशनी से हम जीवन की ऊँचाइयों को पाने का प्रयास करेंगे। यमराज का नचिकेता से संवाद जारी है। दोनों के बीच जो कुछ वार्तालाप हो रहा है, उसकी अगली कड़ियाँ अब ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं । आने वाले पृष्ठों में हम इसकी और गहराई में उतरने का प्रयास करेंगे।
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