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________________ मुझ पर पड़ी। वह मुस्कुराते हुए नीचे उतर आया। मुझे लगा कि मेरे जीवन का सौभाग्य आखिर लौट आया। उसने दायाँ हाथ बाहर निकालकर मुझसे कहा – 'मित्र! क्या दोगे?' मैं बड़ी उलझन में पड़ गया । कैसा भद्दा मज़ाक था यह । एक भिखारी के आगे अपने हाथ फैलाना ! मैंने अपने झोले में से अन्न का एक छोटा दाना निकाला और उसे दे दिया। मेरे आश्चर्य का तब कोई ठिकाना न रहा, जब सूरज छिपे मैंने जमीन पर अपने झोले को खाली किया, तो एक सोने का दाना उससे आ गिरा। मैं सुबक-सुबक रोते हुए सोचने लगा कि काश, मैंने अपना सर्वस्व तुझे दे डाला होता! जितना दोगे, उतना पाओगे। झोली में से जितना उलीचोगे, झोले में उतना ही भराव होगा। प्रभु ओंकारमय है। जिस प्रभु को ओम् के साथ याद करोगे, वह उसी में साकार हो उठेगा। ओम् की शक्ति आपको ताकत देने लगेगी। ओंकार की साधना के परिणाम तत्काल दिखाई देने लगते हैं। आपको अपनी इच्छानुसार परिणाम प्राप्त होने लगेंगे। मृत्युदेव कहते हैं, ओम् की ताकत अपार है। ओम के जरिए आप किसी भी देवता से सम्बन्ध जोड़ सकते हैं। हमारे अंतर के कर्म, जन्मों के कर्म ओम् के उच्चारण से क्षीण होने लगते हैं। हमारे दुखों को कम करने का उपाय है ओम् का उच्चारण, स्मरण और दर्शन। अंतरमन के कषायों को काटने का साधन है ओम् । ओंकार का जाप शुरू करते ही अंतरमन के कषाय कटने लगते हैं, मिटने लगते हैं। हमारे चित्त की विक्षिप्तताएँ, राग-द्वेष मिटने लगेंगे। हम सब पागल हैं, कोई थोडा, तो कोई ज़्यादा। हम सब जानते हैं कि धन-सम्पत्ति, जमीन-जायदाद, सब यहीं रह जाने हैं; फिर भी धन के पीछे दौड़ते रहते हैं । चित्त के विक्षेप कैसे काटे जाएँ-इस पर विचार करें। व्यक्ति तय करता है कि अमुक काम कल से नहीं करूँगा, लेकिन अगले दिन भूल जाता है। टीवी की आदत, बीवी की आदत, एक बार पड़ जाए तो नहीं छूटती। व्यक्ति कोशिश तो खूब करता है, लेकिन बात नहीं बनती। कैसे मिटे यह पागलपन? घोषित पागलों के लिए तो पागलखाने खुले हैं, लेकिन जो पागल हैं, परन्तु खुद को पागल कहलाना पसंद नहीं करते, ऐसे पागलों का इलाज तो महामंत्र ओम् ही करेगा। ओम् का उच्चारण करते हैं तो मन कहता है, चोरी नहीं करूँगा, लेकिन चित्त की विक्षिप्तताएँ पीछा नहीं छोड़तीं। एक किसान को जादुई टब मिल गया। खेत में हल जोत रहा था कि हल किसी चीज से टकराया और वहाँ से खुदाई की तो वह टब निकला। उसके पास लीची का एक पौधा रखा था। उसने वह पौधा टब में रख दिया। टब घर ले जाकर रख दिया। अगले दिन उसने देखा, टब में सौ पौधे रखे थे। उसे आश्चर्य हुआ। उसने दूसरे दिन दो पौधे उसी टब में रखे, तो अगले दिन वहाँ दो सौ पौधे हो गए। किसान को बड़ा मजा आया। 188 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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