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आत्म-दर्शन का सरल तरीका
मृत्युदेव यमराज और बाल-ऋषि नचिकेता के बीच बहुत ही महत्त्वपूर्ण संवाद हो रहे हैं, जिनका आनन्द हम पिछले कुछ दिनों से ले रहे हैं। अब हम मंज़िल के बहुत निकट आ गए हैं। यम और नचिकेता के बीच हुए संवाद की ज्योति हजारों वर्षों से मानवता का पथ-प्रदर्शन करती आ रही है । हम भी इसे समझने को उत्सुक हुए हैं और निरन्तर कठोनिषद् के मर्म को समझने की कोशिश कर रहे हैं । इन संवादों की ज्योति आज भी भव-भवान्तर में भटक रहे जीवों को रास्ता दिखा रही है। जन्म-जन्मान्तर के बाद ही ऐसे संयोग बनते हैं कि किसी को साक्षात् मृत्युदेव से संवाद करने का अवसर मिल पाता है । सामान्य तौर पर तो इंसान को इंसान से ही बातचीत का मौका कम मिलता है, लेकिन सामान्य इंसान से हटकर, चाहे वह कोई जीव-जंतु ही क्यों न हो, हमें किसी से संवाद का मौका कहाँ मिलता है ? उनकी भाषा हम नहीं समझते और हमारी भाषा उनकी समझ में नहीं आती ।
मृत्यु के बारे में लोग इतना ही जानते हैं कि कोई तत्त्व ऐसा होता है, जो मृत्यु के रूप में इंसान के पास आता है। कोई काली छाया होती है, जो इंसान में रहने वाले जीव को लेकर निकल जाया करती है । यह नचिकेता का सौभाग्य था कि उन्हें मृत्युदेव से साक्षात्कार करने का अवसर मिला । हमारा भी सौभाग्य है कि हम कठोपनिषद् के माध्यम से एक तरह से मृत्युदेव से मिल रहे हैं । हम यही समझें कि हमारे सामने मृत्यु खड़ी है और हम मृत्युदेव से मृत्यु का रहस्य समझ रहे हैं क्योंकि आत्मा के बारे में जितना बोध, जितनी जानकारी स्वयं मृत्यु को होती है, उतनी और किसी को नहीं हो सकती।
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संसार में रहने वाले प्राणियों को आत्म-तत्त्व के बारे में जानने के लिए कितनी-कितनी साधना करनी पड़ती है, कितनी - कितनी तपस्याएँ करनी पड़ती हैं। जाने कितने वर्षों तक ब्रह्मचर्य और शील- व्रत का पालन करना पड़ता है । इसके बाद भी
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