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________________ इसी तरह अध्यात्म की बात करें, तो शास्त्र तो खूब हैं, लेकिन उन सबका सार एकमात्र ॐ शब्द में आ जाता है । दुनिया के एक-एक धर्म ने हजारों शास्त्रों का निर्माण किया है। इन शास्त्रों को पढ़ते-पढ़ते आदमी का अंत हो जाता है, लेकिन शास्त्रों का अंत नहीं होता। इंसान का अंतर्मन भी वेद समान ही है। स्वयं का जीवन भी एक जीवंत शास्त्र है, इसे जरूर पढ़ें । दुनिया में वेद चार हैं, पर खुद का जीवन स्वयं एक वेद है। यह पाँचवाँ वेद नहीं, पहला वेद है। जो भी हो, सारे शास्त्रों और किताबों का सार एक ही शब्द में समाया है, और वह है ॐ । ॐ अक्षय है, इसका क्षय नहीं हो सकता। यह हर शास्त्र का पहला अक्षर है, हर धर्म का प्रथम बीजमंत्र है, हर धर्म का आदि स्रोत है। सारे धर्म - कर्म, पंथ - परम्परा ॐ कार से ही पैदा हुई हैं। यह सबका आराध्य है, यह सबका प्रजापिता है । ॐ है, तो दुनिया है । ॐ नहीं, तो कुछ भी नहीं । ॐ ही नहीं होगा, तो ब्रह्मा कहाँ से आएँगे ? बिना ॐ के विष्णु की वसीयत क्या ? स्वयं भगवान विष्णु ॐ की ही वसीयत हैं । महादेव भी ॐ कार की ज्योति से ही प्रकट हुए हैं। जिसका जाप, जिसका स्मरण महादेव तक करते हैं, अपनी जटा में जिसको प्रतिष्ठित रखते है, वह महिमामयी अनन्तता का वाचक ॐ ही है। ॐ यानी ॐकारेश्वर । ॐ यानी पहला शब्द, पहला ब्रह्म, संसार की पहली कृति, पहली रचना । | हर रचनाकार किसी-न-किसी रचना का सृजन करता है । जगत् का निर्माण भी इसी तरह हुआ है । जगत् की शुरुआत में जो पहला शब्द आया, जो पराध्वनि हुई, वह ॐ ही थी। कोई भी बरगद बीज में ही छिपा होता है। बरगद पैदा नहीं होता, वह तो प्रकट हुआ करता है। ईश्वर भी प्रकट हुआ। सबसे पहले ब्रह्माण्ड में एक ज्योतिपिंड था। इसी पिंड ने अपने आपको ॐ के रूप में प्रकट किया। ॐ में से ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश- तीन देवता प्रकट हुए। तीनों का उत्पत्ति केन्द्र ॐ ही है। तीनों ॐ से प्रकट हुए। ब्रह्मा ने सृजन का दायित्व सम्भाला, विष्णु ने पालन का जिम्मा लिया और शिव ने उद्धार किया । इस प्रकार विस्तार होता चला गया। जब कोई ॐकार की साधना कर रहा हो, तो वह अपने मूल स्रोत की उपासना कर रहा होता है । हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और इसमें जो शब्द हैं, वे ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत होते हैं । अ, आ, ऊ का उच्चारण पूरे भराव के साथ होता है और ॐ में यही भराव है। भारतीय दर्शन में जितने भी धर्म हैं, उनके ग्रंथ हैं, उनमें एक ही अक्षर पर जोर दिया गया है और वह शब्द है ॐ । यह एक ऐसी शक्ति है जो किसी बीज मंत्र में होती है । इस शब्द ने अपने आपको समस्त मंत्रों से जोड़ रखा है। देवी-देवताओं के आह्वान के लिए ॐ शब्द सबसे उपयुक्त माना गया है। किसी भी देवता के आह्वान के समय ॐ को जोड़ लें, तो उस मंत्र की ताकत बढ़ जाती है । ॐ 182 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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