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17 शांति, समृद्धि के लिए
ॐ ही क्यों?
बाल ऋषि नचिकेता के द्वारा मृत्युदेव यमराज के समक्ष यह जिज्ञासा उपस्थित की जाती है कि अखिल ब्रह्माण्ड में वह कौन-सा तत्त्व है जो समस्त वेदों का सार है, जिसमें यह सारा चराचर तत्त्व समाया हुआ है? आखिर वह प्रकाशमय तत्त्व कौन है ? मृत्युदेव यमराज ने नचिकेता की जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा, 'वह तत्त्व है ॐ ।' एक ॐकार सतनाम । गुरु नानक ने इसी ॐ की महिमा का वर्णन करते हुए समस्त धर्म के लिए एक ही संदेश दिया कि परम सत्य का नाम ॐ ही है। आज हम उसी ॐकार के बारे में चर्चा करेंगे कि कैसे व्यक्ति अपनी साधना के लिए ॐकार का आलंबन निर्धारित कर सकता है। मृत्युदेव ने कठोपनिषद् के जरिए हमारा मार्गदर्शन किया है कि
सारे वेद जिसका वर्णन करते हैं, हर तपस्या में जिसे महत्त्वपूर्ण साधन माना गया है, वह रहस्यमय तत्त्व ॐ ही है । यमराज ने नचिकेता को सम्बोधित करते हुए कहा, 'वह ॐ अक्षर ही ब्रह्म है, वह अक्षर ही परम श्रेष्ठ है। इस अक्षर को ही जानकर जो जिसकी इच्छा करता है, उसको वही मिल जाता है।'
संसार में दो खास शब्द हैं जिनमें सब कुछ समाया है। एक में सारे संसार का सार समाया है, तो दूसरे में सारे संसार की ममता। पहला है ॐ और दूसरा है माँ । सारे संसार की ममता, मोह, वात्सल्य, श्रद्धा, जीवन के सृजन से लेकर उद्धार तक जिस शब्द का विस्तार है, उसे माँ कहते हैं। माँ की पूजा से ही परमात्मा की पूजा हो जाती है। माँ अपने
आप में ममता का महाकाव्य है, प्रेम का महासागर है, वात्सल्य का आसमाँ है । संसार में जिसका अंत नहीं, उसे आसमाँ कहते हैं और जहाँ में जिसका अंत नहीं उसे माँ कहते है। माँ के चरणों में ही दुनिया का स्वर्ग है। माँ के आँचल में ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। माँ की पूजा कर ली, तो समझ लो कि आपने ईश्वर की पूजा कर ली। माँ सबसे छोटा शब्द है। मानवीय संस्कृति में देखें, तो माँ से ज़्यादा सीधा और सरल, मीठा और प्यारा, रसभीना कोई और शब्द नहीं है।
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