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ही तो हैं। गुरुजन इस मिट्टी में छिपे तत्त्व को उजागर कर देते हैं । चाँदी और लोहे में ज़्यादा मूल्यवान कौन है, कहने को तो चाँदी लेकिन लोहे के भीतर सोना बनने की जो संभावनाएँ छिपी हैं, वे उसे ज़्यादा मूल्यवान बना देती हैं। आप अपने भीतर रहने वाली सम्भावनाओं को प्रकट कर लें। एक विद्यार्थी अपनी संभावनाओं को पहचान ले, अपनी प्रतिभा को उजागर कर ले, तो साधारण में भी असाधारण का जन्म हो सकता है।
नचिकेता ने तब यमराज से अगला प्रश्न पूछा, 'हे मृत्युदेव, जो धर्म से पृथक, अधर्म से पृथक तथा इस कारण रूप प्रपंच से भी पृथक है, और जो भूत और भविष्यत् से भी अन्य है, ऐसा आप किसे देखते हैं, वही मुझसे कहिये ।' नचिकेता के इस प्रश्न में कितनी ही बातें छिपी हैं । नचिकेता की जिज्ञासा है कि 'हे भगवन्, संसार में ऐसा कौनसा तत्त्व है जो धर्म से अलग है और अधर्म से भी अलग है। कार्य से भी अलग है और कारण से भी अलग है । भूतकाल से भी अलग है और वर्तमान, भविष्य से भी परे है । आप मुझे यह रहस्य समझाने की कृपा करें ।'
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प्रत्येक सिक्के के दो पहलू होते हैं - चित और पुट । इसी तरह धर्म और अधर्म भी दो पहलू हैं । मुक्त होना है तो अधर्म से ही नहीं, धर्म से भी ऊपर उठना होगा । अनीति से परे होना है तो नीति को भी अलग करना होगा । अशुभ-शुभ दोनों से मुक्त होना होगा। तब ही हम शुद्ध हो पाएँगे । बेड़ी चाहे सोने की हो या लोहे की, दोनों बाँधती ही हैं। बंधन लोहे की सलाखों का हो या सोने की सलाखों का, बंधन तो बंधन ही माना जाएगा।
राजा उदयन ने चन्द्र प्रद्योत पर हमला किया । चन्द्र प्रद्योत पराजित हो गया । उन्हें बंदी बनाकर लाया गया। राजा ने सैनिकों से कहा कि चन्द्र प्रद्योत को सोने के पिंजरे में रखा जाए। उन्हें पिंजरे सहित राजा के सामने लाया गया । पर्युषण की समाप्ति पर राजा उदयन ने चन्द्र प्रद्योत से क्षमापना की । तब चन्द्र प्रद्योत ने उनसे कहा, 'आपकी क्षमापना का क्या अर्थ है, जब आपने मुझे बेड़ियों में जकड़ रखा है।' राजा ने कहा, 'आपको इस बात के लिए मुझे धन्यवाद देना चाहिए कि मैंने आपको सोने के पिंजरे में रखा है। आपके चारों ओर सोना ही सोना है ।' चन्द्र प्रद्योत ने कहा, 'पिंजरा लोहे का हो या सोने का, बंधन ही कहलाता है। सोने की होने से बेड़ियाँ हाथ की शोभा नहीं बन जाया करतीं।' राजा उदयन का हृदय परिवर्तन हुआ और उसने चन्द्र प्रद्योत को मुक्त कर दिया।
गुस्सा तो गुस्सा ही है, चाहे वह प्रेम से भी क्यों न किया जाए। चाँटा तो चाँटा ही है, चाहे वह प्यार से ही क्यों न मारा गया हो। शकुनि ने अपने अंगरक्षक को ज़हर पिला कर मार दिया। अंगरक्षक ने मरते-मरते पूछा, मैं तो आपका प्रिय पात्र था, फिर आपने मुझे मृत्यु क्यों दी? शकुनि ने कहा, तुम मुझे प्रिय हो, इसलिए जहर दिया है ताकि तुम
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