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परिवर्तन की पहचान हमें तत्त्व-ज्ञान की तरफ ले जाती है। आज एक बच्चा जन्मा, कल वह मर भी सकता है। इस बात को जिसने समझ लिया, वह न तो किसी के आने पर आनन्दित होगा और न ही किसी के चले जाने पर परेशान होगा। नदिया में पानी आता है, चला जाता है, इसलिए कभी-कभी सरोवर के किनारे भी बैठना चाहिए। सरोवर में उठती-गिरती लहरें देखकर हमें अहसास होगा कि एक लहर आ रही है, दूसरी जा रही है। यह प्रकृति का परिवर्तन वाला धर्म समझने की कोशिश करें, बाकी महज साँसों पर ध्यान रखने का कोई औचित्य नहीं है। केवल इस मर्म को समझने के लिए कि प्रकृति परिवर्तनशील है, हम साँसों पर ध्यान करते हैं।
आज चेहरा जवान है, कल उसमें झुर्रियाँ पड़ जाएँगी। इसलिए कुछ है, तो ठीक है और नहीं है, तो ठीक है। कल भी वही कर रहे थे, आज भी वही कर रहे हो, आने वाले कल भी वही सब-कुछ करना है। फिर ज़्यादा जीने का मोह क्यों? अमर तो कोई है नहीं। इसलिए मौत के लिए न तो कोई शिकायत होनी चाहिए और न ही उसे बुलावा देना चाहिए; मौत को जब आना होगा, आ जाएगी। प्रभु की इच्छा है कि मैं रहूँ, तो रह जाएँ। प्रभु की इच्छा है कि चले जाएँ, तो सहज ही चले जाएँ।
बात की शुरुआत हम ने उस राजा की कहानी से की थी जिसने महल तो बहुत खूबसूरत बनवाया था लेकिन उसमें रहने वाला कोई भी चिरस्थायी नहीं है। इस कहानी का मर्म यही है कि हम अपने-आप को समझ सकें, संबंधों को समझ सकें, मित्रों और दुश्मनों को समझ सकें। जिसने प्रकृति के इस मर्म को समझ लिया, वह वीतरागी बन गया। प्रकृति चार जनों को जोड़ती है, तो चार जनों को तोड़ती भी है। संतों के लिए कहावत है कि बापजी रे सिघला पट्टे, कोई घाले कोई नटे, सिघला घाले तो मावे कठे, नहीं घाले तो जावे कठे। यह व्यवस्था समझ लो कि हम साधना के मार्ग पर चलते हैं तो हमें खाना भी पड़ता है। आने वालों की खातिर भी करनी पड़ती है। कभी सम्मान मिलता है, तो कभी अपमान भी झेलना पड़ सकता है। किसी भी परिस्थिति में किसी के लिए मन में कोई शिकवा या शिकायत नहीं होनी चाहिए। सहज रूप में लें सारे सम्बन्धों को। जब तक मेरे आपके संयोग थे, तो ठीक था; अब नहीं हैं, तो कोई बात नहीं। एक पुराना गीत है- मन रे तू काहे न धीर धरे । वो निर्मोही, मोह न जाने, किसका मोह करे। उतना ही उपकार समझ, कोई जितना साथ निभा ले, जन्म-मरण तो एक है सपना, ये सपना बिसरा दे। कोई न संग मरे... मन रे तू काहे न धीर धरे... । तुम किसी के काम आए, तो ठीक और कोई तुम्हारे काम आया, तो ठीक। कोई काम न आए तब भी आनन्द हो। जो है उसमें आनन्द और नहीं है, तो भी आनन्द । ___कहते हैं आनन्दघन के पास एक रानी साहिबा आई। कहने लगी, महाराज, मेरे पति मुझसे रुष्ट रहते हैं, आप कोई तावीज़ बनाकर दें। आनन्दघन मुस्कुराए, उन्होंने
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