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हो जाता है। आत्मा इस शरीर को धारण करने वाला तत्त्व है। इसके निकल जाने पर शिव भी शव बन जाता है। हमारी शान क्या है, यही आत्मा। यही तो हमारा मूल प्राण है, हमारी मूल चेतना है। तत्त्व-ज्ञानी वह है जो दोनों के मर्म को समझ लेता है। जो चिता जलने से पहले अपनी चेतना को जगा लेता है, वही आत्मज्ञान का मालिक बन पाता है।
आप प्रकृति की गोद में बैठें, उसमें होने वाले परिवर्तनों को देखें और समझें। हर व्यक्ति को प्रकृति की गोद में बैठना चाहिए ताकि वह परिवर्तनों से रू-ब-रू हो सके। इस समय पतझड़ का मौसम है। पत्ते गिर रहे हैं। कुछ समय बाद उन पत्तों के स्थान पर हरे पत्ते आने लगेंगे। आप किसी शांत उपवन में जाकर बैठें। वहाँ पेड़ से अपने सिर पर गिरते हुए पत्तों को देखें। जीवन की नश्वरता को समझें। एक पेड़ की ओर झाँकेंगे, तो
आपको नश्वरता का बोध होगा और दूसरे पेड़ को देखेंगे, तो नये उगते पत्तों को देखकर जीवन का अहसास होगा। मैं चाहता हूँ कि हर व्यक्ति गहराई से इस तत्त्व को समझ जाए कि यहाँ कोई भी शाश्वत नहीं है। सब-कुछ यहाँ बदल जाता है। कहीं व्यापार हो रहा है, तो उसमें लाभ मिल रहा है और किसी को व्यापार में नुकसान हो रहा है। कहीं मौसम ठण्डा है, तो कहीं गर्म । कोई व्यक्ति कभी क्रोध में है, तो कभी शांत । इन सारी चीजों को देखकर हमें बोध हो जाना चाहिए कि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है।
कोई भी तत्त्व सदा एक-सा नहीं रहता। न शरीर, न वाणी, न परिस्थितियाँ। कुछ भी सदा समान नहीं रहता। फूल का खिलना, फिर उसका मुरझाना - दोनों ही स्थितियों से फूल को गुजरना पड़ता है। जन्म हुआ, ठीक है, कोई मर गया, चलो यह भी प्रकृति की व्यवस्था है। एक-न-एक दिन सभी को बिछुड़ना है। इसलिए चिंता मत करो। दादा मरता है, तो पोता पैदा हो जाता है। एक जाएगा, दूसरा आएगा – यही प्रकृति है। कोई आएगा, तब भी दुनिया चलती है और कोई चला जाएगा, तब भी दुनिया चलती ही रहेगी। इंदिरा गांधी थीं, तब भी देश था और चली गईं, तब भी देश चल रहा है। माता-पिता हैं, तो बच्चे के पालन में सहुलियत है। ऊपर चले जाएँ, तो बच्चा पीछे बेमौत तो मरने वाला है नहीं। सब यहाँ चला-चली का खेल है। लोग आते हैं और चले जाते हैं । यही प्रकृति का धर्म है, जीवन का मर्म है। इसे समझ लिया, तो जीवन का आधा तत्त्व-ज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान तो हासिल कर लिया। केवल शास्त्रों को मत पढ़ते रहो। यह सारा जगत् ही एक शास्त्र है। रोजमर्रा की जिंदगी में घटने वाली घटनाओं को पढ़ो। हर घटना जगत् के शास्त्र का एक अध्याय है। घटनाओं को जितनी सचेतनता से लोगे, हमारी चेतना में उतनी ही गहराई बनेगी। हम जीवन की सच्ची समझ के मालिक बनेंगे। हमारे राग-द्वेष के अनुबंध शिथिल होंगे।
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