SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नहीं। कोई ध्यान से सुन भी लेते हैं, तो ग्रहण नहीं करते। इसलिए यमराज ने कहा, जो सुनो, उसे ग्रहण भी करो। भागवत कथाओं, सत्संग के आयोजनों में जाने वाले सभी लोग ध्यान से सुनकर ग्रहण करने लगें, तो हिन्दुस्तान का कायाकल्प हो जाए, देश का स्वरूप ही बदल जाए। मन से सुनें, मन से ग्रहण करें, तब ही बात बनेगी। अन्यथा, वही पुरानी कहावत कि 'सुणता-सुणता फूट्या कान, नहीं आयो हिवड़े में ज्ञान।' लोग सुनते खूब हैं, पर एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते हैं। ग्रहण नहीं करते। सुनना व्यक्ति के लिए सौभाग्य की बात है लेकिन सुने हुए को ग्रहण कर लेना ही लाख रुपए की बात है। एक पुरानी कहानी कही-सनी जाती है। राजा भोज के दरबार में तीन मर्तियाँ लाई गईं। तीनों एक जैसी थीं, वज़न, आकार सबका समान था लेकिन तीनों की कीमत अलग-अलग बताई गई। जौहरी चौंके। भला ऐसा क्यों? एक आत्म-ज्ञानी वहाँ मौजूद था। उसने इसका भेद बताने का फैसला किया। उसने एक सूई और धागा मँगवाया। लोगों ने आपस में कानाफूसी की, सूई और धागे से भला क्या पता चल पाएगा कि किस मूर्ति में क्या विशेषता है? आत्म-ज्ञानी ने सूई में धागा पिरोया और एक मूर्ति के कान में डाला। सूई अंदर न जा पाई। उसने बताया, इसकी कीमत है, सवा कौड़ी। दूसरी मूर्ति के कान में सूई डाली, तो दूसरे कान से बाहर निकल आई। उसने बताया, इसकी कीमत है, सवा रुपया। अब बारी आई तीसरी मूर्ति की। इस बार आत्म-ज्ञानी ने सूई को कान में डाला तो सूई भीतर चली गई। सूई को आखिर धागे से पकड़ कर बाहर निकालना पड़ा। आत्म-ज्ञानी ने बताया, यह मूर्ति सवा लाख रुपए की है। इसकी व्याख्या यूँ की गई, पहली मूर्ति इस बात का संकेत कर रही थी कि उसकी तरह के इंसान कुछ सुनना ही पसंद नहीं करते, इसलिए उन लोगों की कीमत सवा कौड़ी से ज्यादा नहीं हो सकती। दूसरी मूर्ति ने सुना लेकिन जो कुछ भी सुना, उसे दूसरे कान से निकाल दिया। ज़िन्दगी में ज़्यादा लोग ऐसे ही हैं जो सुनते तो हैं, लेकिन उसे दूसरे कान से निकाल देते हैं, भीतर कुछ नहीं रखते। लेकिन तीसरी तरह की मूर्ति के समान लोग बहुत कम होते हैं जो सुनते हैं और उसे ग्रहण कर आत्मसात् कर लेते हैं। __ जो सुनता है और ग्रहण कर लेता है, वही सार्थक होता है। केवल सुना-पढ़ा ज्ञान किताबी ज्ञान बनकर रह जाता है। ज्ञान वह है जो ग्रहण किया जाए। पढ़ने के नाम पर तो हर कोई पढ़ा-लिखा मिल जाएगा, लेकिन ग्रहण करने के नाम पर काला अक्षर भैंस बराबर ही मिलेगा। सब तोता-रटंत विद्या वाले हैं। जीवन में जिन्होंने ज्ञान को उपलब्ध किया, वैसे लोग किस्मत से मिल पाते हैं। 168 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy