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________________ जिन महापुरुषों ने ज्ञान उपलब्ध किया है, उनसे सुनना। यमराज जैसे किसी आत्म-योगी से आत्म-तत्त्व के बारे में सुनना। सुनना महत्त्वपूर्ण है। सुनने से ही जिज्ञासा का जन्म होगा। जिज्ञासा से ही हम उस आत्म-तत्त्व तक पहुँच पाएँगे। पहला चरण हुआ - सुनना। केवल कानों से नहीं सुनना, मनोयोग से सुनना। दिल से सुनोगे, अंतर मनोयोग से किसी तत्त्व का श्रवण करोगे तभी श्रवण सार्थक होगा। ऊपर-ऊपर सुनोगे तो क्या होगा? मन कहीं और हो सकता है। मन व्यापार में चला जा सकता है। मन फैक्ट्री में उलझा हुआ रह सकता है। मन बैंक-बेलेंस की गिनती में लगा हुआ रह सकता है। मन दुकान में कर्मचारी आया या नहीं आया, इस उधेड़बुन में उलझा हुआ रह सकता है। भाई यह मन है। कब कहाँ चला जाएगा, कहाँ भटक जाएगा - इसका कोई अता-पता नहीं है। यह बिना घर का मकान-मालिक है। मालिक है पर किस घर का, कितनी देर का मालिक है, यह कोई नहीं जानता। कैमरे से फोटो खींचो, तो यह उस फोटो में नहीं आता, एक्स-रे करो तो यह एक्स-रे में भी नहीं आता। सी.टी.-स्केन या एम.आर.आई. करो, तब भी मन पकड़ में नहीं आता। जो आता है वह स्थूल है जबकि मन आत्यन्तिक सूक्ष्म है। __ऐसा हुआ, एक व्यक्ति घर में बैठा पूजा कर रहा था। एक आदमी उनके घर पहुँचा। उस व्यक्ति की पुत्रवधु बाहर बैठी थी। उसने पूछा, ससुर जी घर पर हैं ? बहू ने कहा, वे तो जूते की दूकान पर गए हैं। जूते की दुकान पर गया, तो उसे सेठजी नहीं मिले। वह वापस लौटा। कहने लगा, वहाँ तो नहीं है। बहू ने कहा, अब वे कपड़े की दुकान पर गए हैं। वह आदमी कपड़े की दूकान पर भी गया, लेकिन सेठजी उसे नहीं मिले। वह वापस लौटा तो देखा, सेठजी घर के भीतरी कमरे से निकल रहे हैं। वह चौंका। नाराज़ होकर कहने लगा, आप घर में ही थे, लेकिन आपकी बहू ने कभी कहा कि आप जूते की दुकान पर गए हैं और कभी कहा कि कपड़े की दूकान पर गए हैं। यह सब क्या है? ससुर भी चौंका। अरे, बहू ने ऐसा क्यों कहा। पता चला कि माला फेरते समय सेठजी के मन में एक बार तो आया था कि आज जूते खरीदने हैं। थोड़ी देर बाद कपड़ों की दुकान का ख़याल आया था। व्यापार के विकल्प मन में उठे थे। आप माला फेर रहे थे लेकिन मन कहीं और था। इसलिए कहा है, आत्मतत्त्व प्राप्ति के लिए पहला चरण है - मनोयोगपूर्वक सुनना। शहर में सत्संग खूब हो रहे हैं। हालत यह है कि हर संत के पास भीड़ उमड़ रही है, लेकिन इंसान बदल नहीं रहा। कथाएँ मनोरंजन की तरह सुनी जा रही हैं, इसीलिए तो हृदय परिवर्तन नहीं हो रहा है। इंसान कथाओं में जाता ज़रूर है लेकिन ध्यान से सुनता 167 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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