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________________ प्रतिभा मिलकर चमत्कार कर सकते हैं और आने वाला कल हम पर गौरव कर सकता है, हम समय के स्वर्णिम हस्ताक्षर बन सकते हैं, समय के शिलालेख बन सकते हैं। जिस तरह लोग चिराग की रोशनी में अपने जीवन के रास्ते तलाश लिया करते हैं, उसी तरह आने वाले कल में लोग हमारे जीवन से भी प्रेरणा ले सकते हैं। हर व्यक्ति आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ प्राप्त करे, हर व्यक्ति दिल से जीए, यही कठोपनिषद् की बुनियादी प्रेरणा है। मन जीवन की सारी बीमारियों की जड है, जीवन की सारी उत्तेजना, आवेश का कारण है। राग-द्वेष का सारा दलदल इसी में समाया रहता है। दिल देवालय है, हमारा दिल परमात्मा का मंदिर है। दिल एक मंदिर है, प्यार की जिसमें होती है. पूजा, यह प्रीतम का घर है। हमारा दिल आत्मा का घर है और दुनिया में जीना है तो मन से नहीं, आत्मा से जीएँ। मन से जीने वाला व्यक्ति स्वार्थ और प्रपंच का जीवन जी सकता है, लेकिन दिल से, आत्मा से जीने वाला हर किसी को पात्र बना सकता है। वह लेने में विश्वास नहीं रखता, वह देना जानता है। मन के भाव स्वार्थ से जुड़े रहते हैं, इसलिए मन हमेशा लेना जानता है और दिल हमेशा देना जानता है। इसीलिए तो दिल हमारा देवता है। दिल हमेशा कुछ-न-कुछ देना ही चाहता है। दिल प्रेम का घर है और प्रेम लेना नहीं जानता। प्रेम तो हमेशा देना ही चाहता है। प्रेम कुर्बानी का दूसरा नाम है। वह अपने आपको भी दे देता है। प्रेम समर्पण का नाम है, इसलिए दिल समर्पण का सेतु है। दिल शांति का तीर्थ है। यह हमारे भीतर छिपा अद्भुत कमल है। दिल आत्मा को, आत्मा की अनन्त ऊर्जा को धारण करने वाला केन्द्र है। दिल चलता रहता है तब तक हम खुद को जीवित कहते हैं और जब दिल धड़कना बंद कर देता है तो सब कुछ बंद हो जाता है। सब कुछ बंद होने पर दिल धड़कता रहता है तब तक आदमी को जीवित माना जाता है, भले ही वह कोमा में ही क्यों न चला जाए। लेकिन यह दिल यदि बंद हो जाए, तो इंसान खुद ही बंद हो जाता है। सारी ताकत दिल की ही है और दिल को ताक़त मिलती है व्यक्ति की अपनी अंतश्चेतना से, अंतरात्मा से। यमराज नचिकेता को आत्मा का रहस्य समझाते हुए कहते हैं, वत्स! याद रखो,यह जो कठिनता से दिखाई देने वाली आत्मा है, यह मनुष्य के अंतर्हदय में निवास करती है। यह गहन अंधेरे में रहने वाला देव है। आत्मा स्वयं देव है। लोग ब्रह्मा की पूजा करते हैं, महावीर की पूजा करते हैं, बुद्ध-कृष्ण को पूजते हैं। दुनिया में ऐसा कोई मंदिर नहीं है जहाँ तुम्हें सारे देवी-देवता उपलब्ध हो जाएँ, 164 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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