________________
लेकिन ज़िंदगी में ऐसा देवालय ज़रूर है जिसमें सारे देवता समाहित हैं, वह है आत्मा। ब्रह्मा हमें जन्म देते हैं, विष्णु हमारा पालन करते हैं, शिव हमारा उद्धार करते हैं। सच्चाई तो यह है कि मनुष्य की अपनी आत्मा ही उसका ब्रह्म है जो उसे जन्म देती है, उसका विष्णु है जो उसका पालन करती है, आत्मा ही उसका शिव है जो उसका उद्धार करती है । हमारा आत्मदेव ही हमारा महादेव है ।
अच्छे रास्तों पर ले जाने वाली आत्मा हमारा मित्र है और ग़लत रास्तों पर ले जाने वाली आत्मा हमारी शत्रु है । आत्मा अर्थात् हम स्वयं, आत्मा अर्थात् मैं, आत्मा अर्थात् जीवन। लोग दूसरों पर विजय प्राप्त किया करते हैं, पर ज्ञानी लोग कहते हैं कि दूसरों को जीतना सरल है, लेकिन खुद पर विजय प्राप्त करना मुश्किल है। जो अपने आपको जान लेता है, वह सबको जान लिया करता है । जो अपने आप पर विजय प्राप्त कर लेता है, वह दूसरों पर भी विजय पाने का अधिकारी हो जाता है । किसी के लिए विश्व - विजय आसान होती होगी, लेकिन अपने-आप पर विजय पाना तो सिकंदर तक के लिए भी संभव नहीं हो पाया था ।
सिकंदर गंभीर रूप से बीमार हो गया । खूब इलाज कराया गया, लेकिन उसके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो सका । उसने वैद्यों से कहा कि अगर वे उसे चौबीस घंटे का जीवन दिला सकें, तो वह खुद के वज़न के बराबर सोना देगा | लेकिन कोई ऐसा न कर सका। उसने कहा कि मुझे सिर्फ़ बारह घंटे कहीं से ला दो, चाहे मेरा आधा राज्य ले लो, लेकिन जीवन कहीं बाजार में थोड़े ही मिलता है जो लाकर दे दिया जाए। सिकंदर ने फिर कहा मैं अब तक जीता गया दुनिया का सारा राज्य उस व्यक्ति को देने को तैयार हूँ जो मुझे एक घंटे का जीवन जीने के लायक बना दे, लेकिन कोई ऐसा न कर पाया। सिकंदर मर गया। तब से दुनिया में यह मशहूर हो गया कि आदमी बँधी मुट्ठी आता है, पर हाथ पसारे जाता है। सिकंदर हार गया, महावीर जीत गये । नेपोलियन हार गया, बुद्ध जीत गए। आत्म-विजय का मार्ग ही ऐसा है, जो हर विश्व विजय से बड़ा मार्ग है । इसीलिए बड़े-से-बड़ा राजा और बड़े से बड़ा राष्ट्रपति भी संत जनों के आगे नतमस्तक हो जाता है। यह मानते हुए कि वैभव कितना भी बड़ा क्यों न हो, के आगे तो बौना ही है । इसीलिए कहा गया है - स्वयं पर विजय पाना, अपनी मृत्यु पर विजय पाना किसी के वश में नहीं है ।
त्याग
यमराज ने नचिकेता को आत्म-ज्ञान के रहस्य बताने शुरू किए कि व्यक्ति के अंतर्हृदय में ही व्यक्ति की आत्मा का निवास है । ऐसा करते हुए वे नचिकेता को मानो संदेश दे रहे हैं कि तुमने आत्मा का निवास जान लिया है, तुमने आत्म स्वरूप को पहचान लिया है। इसलिए हे नचिकेता ! परमात्मा और स्वर्ग-प्राप्ति के
Jain Education International
-
165
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org