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________________ चुका है तो वह शहर में रहे या जंगल में, अंधेरे में जाए या रोशनी में, वह अपनी राह ढूँढ़ ही लेगा। गुलाब का फूल तो जहाँ भी जाएगा, अपनी महक फैलाएगा ही। ___ एक बार जब मैं भगवान सूर्यदेव की अर्चना कर रहा था कि तभी एक सज्जन ने मुझसे पूछा, इंसान को किसकी रोशनी में जीना चाहिए? मेरी नज़र सूर्य पर थी सो मैंने उसे कहा, सूर्य की रोशनी में जीना चाहिए। उसने अगला सवाल पूछा - सूर्य की रोशनी न हो तो? मेरा जवाब था, चाँद की रोशनी में। सजन तो मेरी परीक्षा लेने पर तुले थे। उन्होंने फिर पूछा, चाँद की रोशनी न हो तब? मेरा जवाब था, तब इंसान को सितारों की रोशनी में जीना चाहिए। वे सज्जन अगला सवाल लेकर तैयार थे, सितारों की रोशनी न मिल पाए तो? मैंने उन्हें समझाया, तब आदमी को दीये की रोशनी लाभकारी है। उन्होंने फिर पूछा – दीया भी न हो तो? मैंने उस सज्जन की मंशा समझते हुए उन्हें समझाया - प्रिय वत्स! तुम हर तरफ नकारात्मक संभावनाएं तलाश रहे हो, तो मैं बता देना चाहता हूँ कि इंसान के हाथ में कोई भी रोशनी न बची हो, तो उसे अपने खुद के भीतर की रोशनी को उजागर करना चाहिए। इंसान के लिए सबसे बड़ी और सार्थक रोशनी उसकी खुद की होती है। ___ ज्ञानी कहते हैं - अप्प दीपो भव। इंसान को अपना दीपक खुद बनना चाहिए। कोई दूसरा तुम्हारे लिए रोशनी देने में मददगार बने, तो अच्छी बात है; लेकिन ऐसा न हो पाए, तो हमें अपना आत्म-दीप जलाना चाहिए, अपनी रोशनी खुद बन जाना चाहिए, अपने जीवन में नई बुलंदियों, नई ऊँचाइयों को उपलब्ध करना चाहिए। यमराज नचिकेता को उसी आत्म-ज्योति के बारे में बता रहे हैं जो इंसान के जीवन का आधार है, प्राणी मात्र के जीवन का आधार। यमराज कहते हैं - आत्मा वह है जो हमारे जीवन को थामे हुए है। आत्मा वह है, जिसके रहते हम जीवित कहलाते हैं और जिसके निकल जाते ही हम मृत हो जाया करते हैं। कुल मिलाकर, व्यक्ति की अंतश्चेतना, अंतरात्मा ही व्यक्ति के जीवन का आधार है। बिना नींव का मकान नहीं बनता; वैसे ही बगैर चेतना, बगैर प्राणों के शरीर का कोई आधार नहीं होता। शरीर ने आत्मा को धारण कर रखा है और आत्मा ने शरीर को। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। आत्मा को साकार करना है, तो शरीर को आधार बनाना होगा और शरीर को टिकाए रखना है, तो उसमें आत्मा का, प्राणों का संचार करना होगा। यमराज ने नचिकेता को उस आत्म-ज्योति का रहस्य बताने की कोशिश की क्योंकि नचिकेता ने यमराज को स्पष्ट कर दिया था कि वह तो मृत्यु का रहस्य जानने ही उनके सम्मुख उपस्थित हुआ है। तब यमराज ने नचिकेता की कई प्रकार से परीक्षा ली, 161 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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