SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बदलता रहता है। मैं पदार्थ भी नहीं हूँ, पदार्थ परिवर्तनशील है। मैं वस्तु नहीं हूँ तो मैं आखिर क्या हूँ? तब भीतर एक किरण उतरेगी जिसके प्रकाश में हम भीतर की तह तक पहुँचते हुए अपने को जानने में सफल होंगे कि मैं वास्तव में यह हूँ। तब भीतर प्रकाश फूटेगा, अंतर की आवाज़ आएगी - मैं एक आत्मा हूँ। साधक इस आत्मा को जानने के लिए ही गुरुजनों के पास जाया करते हैं। स्वाध्याय, ध्यान, ज्ञान-चर्चा अथवा अन्य विविध आयामों से एक ही तत्त्व जानना चाहेंगे कि मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ। तब इसका मूल उत्तर, समाधान हमें मिल जाएगा। आत्मा को जानना कठिन है। अपने आपको जानना कठिन है। कहना बहुत आसान है कि शरीर अलग है और आत्मा अलग है, पर खुद के मन में खोट आते ही सारे भेद मिट जाते हैं। हम ताक-झाँक करने लगते हैं। ज्ञान धरा रह जाता है। क्रोध बुरा है, ज्ञानी यह जानता है; फिर भी क्रोध के धरातल के नीचे आ जाता है। कहना आसान है, दूसरों को समाधान देना भी आसान है, लेकिन अपना समाधान खोजना मुश्किल होता है। यह बड़ी कठिन समस्या है। __आदमी मैं और मेरा के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है। संसार भी इसी के चारों तरफ चक्कर लगाता है। मेरा शब्द कहाँ से आया? मैं से ही मेरा का जन्म हुआ है। मैं हूँ तो मेरा है। यह मेरा, वह मेरा। आपने घड़ी खरीदी, कहने लगे, मेरी है। संबंध जुड़ गया। मैं और मेरे का आरोपण हो गया। मेरे से मुक्ति पानी है तो मैं से हटना होगा, मात्र अपने आपसे जुड़ना होगा। आत्म-ज्ञान के रास्ते पर चलना हो तो मैं और मेरा नहीं, सब-कुछ ऊपर वाले का है - यह सोच पैदा करनी होगी। - अपना है भी क्या? शरीर ही अपना नहीं है, तो फिर क्या अपना है ? यह शरीर तो दगा देने वाला है। ज्ञानी व्यक्ति इस जंजाल में नहीं पड़ता। वह तो यही जानना चाहता है कि वह कौन है? आओ अपने आपको जानें। ध्यान करें, पलकों को झुकाएँ, मौन साधे, फिर अपने भीतर उतरें। प्रश्न प्रगाढ़ नहीं होगा, तो उत्तर भी प्रगाढ़ नहीं आएगा। खोजो मत कि मैं आत्मा हूँ; यही खोजो, मैं कौन हूँ? आत्मा का शब्द भी क्यों ढोएँ? व्यर्थ के प्रश्न हटाओ, सार्थक प्रश्नों को जन्म दो। हरेक का किसी न किसी से संबंध है। मैं कौन हूँ इस पर महज़ विचार मत करो, बल्कि इस सत्य का भीतर में अनुभव करो, एहसास करो। मुल्ला नसरुद्दीन बीमार पड़ गया। उसके पेट में दर्द उठा। वह एक वैद्य के पास गया।वैद्य ने उसे तीन दिन की पुड़िया दी। वह रवाना होने लगा तो उसने वैद्य से पूछा - दवा कैसे लूँ, पानी से या दूध से ? वैद्य ने बताया -- दूध से लेना। नसरुद्दीन फिर पूछने लगा - गाय का या भैंस का? इस तरह सवाल पर सवाल खड़े करने लगा। व्यर्थ के 154 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy