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सवाल पूछते रहोगे, तो व्यर्थ के ही उत्तर मिलेंगे। कोई सार्थक उत्तर या समाधान नहीं मिलेगा। आत्म-जिज्ञासा के मार्ग पर प्यास होना आवश्यक है। प्रश्न मन में लेकर शास्त्रों का अध्ययन करोगे, तब ही आत्म-ज्ञान के मार्ग पर बढ़ पाओगे। इसे हम यूँ ही नहीं समझ सकते, हमें अपने आपसे रू-ब-रू होना पड़ेगा धैर्यपूर्वक, शांतिपूर्वक, मनोयोगपूर्वक। ध्यान अपने आप से मुलाकात करने का ही मार्ग है। ध्यान यानी बाहर की आँखें बंद करके भीतर में डूबना, अपने आप में डूबना। ध्यान स्वयं में लीन होने का मार्ग है। मैंने कहा - मार्ग है पर हकीकत में ध्यान कोई मार्ग नहीं है बल्कि लीन होना ही है अपने में, अपनी अंतरात्मा में।
नचिकेता यमराज के सम्मुख हैं और उनके जिज्ञासा भरे प्रश्न सुनकर यमराज भी प्रसन्न हैं । नचिकेता कह रहे हैं, हे योगीराज, हे मृत्यु के रहस्य के ज्ञाता, बताएँ, आत्मा क्या है ? इसका स्वरूप क्या है ?
__तब यमराज नचिकेता को समझाते हैं, उस कठिनता से दीख पड़ने वाले, गूढ़ स्थान में अनुप्रविष्ट, हृदय में स्थित, गहन स्थान में रहने वाले, पुरातन देव को अध्यात्म योग की प्रगति द्वारा जानकर बुद्धिमान पुरुष हर्ष-शोक को त्याग देता है। मनुष्य इस आत्म-तत्त्व को भली प्रकार ग्रहण करके, उस पर विवेकपूर्ण विचार करके इस सूक्ष्म आत्म-तत्त्व को जानकर, इस मोदनीय की उपलब्धि कर अति आनन्दित हो जाता है। मैं तुझ नचिकेता के लिए परमात्मा का द्वार खुला हुआ मानता हूँ।
यमराज बता रहे हैं कि यह कठिनता से दिखाई देने वाली वस्तु है। असंभव तो नहीं है, लेकिन दुर्लभ तत्त्व है। यह विरले लोगों को अनुभव हो पाता है। इसे समझना आसान नहीं है। एक गुरुकुल में गुरु अपने दो शिष्यों के साथ गुरुकुल के आँगन में सोए हुए थे। उन्हें महसूस हुआ कि महर्षि नारद आकाशीय मार्ग से गुज़र रहे हैं। नारद सामने से आ रहे किसी देव से चर्चा कर रहे हैं कि यह गुरुकुल में जो गुरु के साथ एक शिष्य सोया है, वह एक दिन महापुरुष बनने वाला है, उसे देखकर मुझे सुख मिल रहा है। नारद और उस देव ने उन्हें प्रणाम किया और आगे निकल गए।
__ अब गुरु की नींद उड़ गई। शिष्य तो दो सो रहे थे, नारद किस शिष्य के बारे में कह रहे थे, यह कैसे पता लगाया जाए? उन्होंने अगले दिन दोनों शिष्यों की परीक्षा लेने की ठानी। उन्होंने दोनों को एक-एक कबूतर दिया और कहा कि जाओ, कबूतर की गर्दन ऐसे स्थान पर जाकर मरोड़ आओ, जहाँ कोई देख नहीं रहा हो।
एक शिष्य गया और कुछ ही देर में मरा कबूतर लेकर गुरु के पास आ गया। दूसरा शिष्य जंगल में गया और कबूतर की गर्दन मरोड़ने ही वाला था कि उसे ख़याल आया, यहाँ पेड़-पौधे देख रहे हैं। वह आगे निकला, एक पहाड़ी पर पहुँचा। तब तक रात हो
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