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________________ 14 अपने आप से पूछिए मैं कौन हूँ? प्रत्येक उत्तर की शुरुआत किसी-न-किसी प्रश्न से हुआ करती है। प्रत्येक समाधान का शुभारंभ किसी-न-किसी समस्या की गोद से ही होता है। दुनिया में ऐसे समाधानों की कीमत नहीं हुआ करती, जिन्हें किसी समस्या का सामना न करना पड़ा हो। हर सफल व्यक्ति अपनी सफलता की सही क़ीमत तभी आँक पाता है, जब उसने असफलता का स्वाद भी चखा हो। नचिकेता ने यमराज के सम्मुख एक प्रश्न उपस्थित किया था कि कुछ लोग कहते हैं - प्राणी मरने के बाद रहता है और कुछ कहते हैं नहीं रहता। यह क्या है, इस मृत्यु का रहस्य क्या है? मेरे मन में इसका उत्तर जानने की जिज्ञासा है। जब तक किसी के भीतर जिज्ञासा जन्म नहीं लेगी, प्रश्न पैदा नहीं होगा, तो ऐसा व्यक्ति कोई उत्तर पाकर भी क्या कर लेगा। उत्तर की आवश्यकता बाद में है, पहले प्रश्न का परिपक्व हो जाना आवश्यक है। कृष्ण चाहते तो अर्जुन को बंद कमरे में भी गीता का संदेश दे सकते थे, लेकिन वे जानते थे कि जब किसी के सामने महाभारत का पूरा परिदृश्य उपस्थित न होगा, कुरुक्षेत्र नहीं होगा, तब तक कोई भी अर्जुन नहीं बन पाएगा। तब गीता का संदेश भी सार्थक नहीं हो पाएगा। इसलिए हर किसी के भीतर यह प्रश्न जन्म ले ही लेना चाहिए कि आखिर वह कौन है ? अहम् को अस्मि, मैं कौन हूँ ? प्रश्न ही नहीं होगा तो उसके उत्तर की तलाश कैसे हो पाएगी? किसी भी उत्तर के लिए सबसे आवश्यक चीज़ है - प्रश्न । एक ग्वाला गायों को लेकर तालाब के पास तो जा सकता है, लेकिन वह गायों को पानी नहीं पिला सकता। पानी तो गायें तब ही पीएँगी, जब उन्हें पानी की प्यास होगी। गुरु आत्म-ज्ञान का रास्ता बता सकते हैं, लेकिन उस पर चलना तो शिष्य की अपनी मौज है। गायों को प्यास होगी तो वे पानी पी लेंगी, अन्यथा मुँह घुमा लेंगी। 152 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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