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दोनों एक समान।' शिष्य यह सुनकर भौंचक्का रह गया। उस दिन से ज्योतिषाचार्य का जीवन बदल गया। पुस्तकों का ज्ञान पाकर खुद को बहुत बड़ा ज्ञानी समझने वाला शिष्य ज्ञान-प्राप्ति की राह पर पहला क़दम बढ़ाने योग्य हो गया।मण भर के भाषण की बजाय कण भर का आचरण ज़्यादा प्रभावी होता है।
ऐसे सत्पुरुष कम ही मिलते हैं। थोड़े से प्रलोभन से आदमी फिसल जाया करता है। निमित्त न बने, तो कोई भी शांति का अवतार बन सकता है, लेकिन मौका मिलते ही वह चंडकौशिक की तरह गुस्सा फुफकारने लगता है। आदमी तब तक ही ईमानदार है, जब तक उसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता। बस, मौका मिलना चाहिए।
यमराज ने नचिकेता से कहा – 'हे वत्स, तुम उत्तम धैर्य वाले हो, तुम्हारे जैसे शिष्य ही हमें मिला करें।' एक आत्म-ज्ञानी अपात्र को ज्ञान देगा, तो ज्ञान व्यर्थ चला जाएगा। पात्रता होनी चाहिए। कभी-कभी एक घटना से भी आत्म-ज्ञान मिल जाता है। एक आदमी किसी संत के पास पहुँचा और कहने लगा, महाराज, मेरे पास कुछ भी नहीं है। मुझे आप आशीर्वाद दे दीजिए, शायद मेरा भला हो जाए। संत ने उसे कहा, जाओ, मेरी झोंपड़ी के पीछे एक पत्थर का टुकड़ा पड़ा है, ले जाओ। वह वास्तव में पारस का टुकड़ा था। उस आदमी ने घर जाकर जिस चीज से भी उसे छुआया, वह चीज़ सोना बन गई। सोना ही सोना देखकर उसे आत्म-ज्ञान हो गया। अरे, उस संत ने पारसको झोंपडी के पीछे फेंक दिया था और मैं हूँ कि सोना ही सोना पाकर भी अतृप्त हूँ। आत्म-ज्ञान की राह पर यही उसका पहला कदम था। उसकी चेतना में वैराग्य के भाव जग गए। वह वापस संत के पास लौट आया। उसने पारस वापस लौटा दिया और संत से कहा - 'गुरुदेव अब मुझे पारस नहीं, बल्कि वह दीजिए जिसे पाने के लिए आपने पारस तक का त्याग कर दिया था।'
अर्थ, काम, मोह के चक्कर में आने की बजाय ज्ञान की राह पर चलने का प्रयास करो। अन्यथा सिर्फ किताबें ही पढ़ते रहोगे, तो पंडित तो जरूर बन जाओगे, लेकिन प्रज्ञा को कहाँ से लाओगे! पंडितों की इस जहान में कोई कमी नहीं है; कमी है तो आत्म-ज्ञानियों और आत्म-योगियों की कमी है। इसलिए अपने आपको उस दैवीय प्रकाश के पास ले जाने की कोशिश करो। यमराज ने नचिकेता को जो आत्म-ज्ञान दिया, वह हमारे जीवन में भी बदलाव लाने वाला साबित हो; हमें प्रकाश की राह पर ले जाए।
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