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यमराज नचिकेता से कहते हैं - यह बुद्धि इंसान को तर्क से उपलब्ध नहीं हुआ करती। हे नचिकेता, तुम प्रलोभन की बाढ में भी अविचल रहे, अडिग रहे; इसलिए तुम आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के सच्चे अधिकारी हो, तुम मेरे सच्चे शिष्य हो। विपरीत परिस्थितियों में भी जो अविचल रहे, वही साधु बन सकता है, ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी हुआ करता है। ___ महर्षि याज्ञवल्क्य रोजाना दिव्य शास्त्रों पर प्रवचन किया करते थे। एक दिन वे प्रवचन के लिए बैठे, लेकिन उन्होंने बोलना प्रारंभ नहीं किया। वहाँ बैठे लोगों में फुसफुसाहट हुई कि अभी राजा जनक नहीं आए हैं; इसलिए प्रवचन प्रारंभ नहीं किया जा रहा है। एक-दो ने तो यहाँ तक कह दिया कि साधु भी राजा के मोह से ऊपर नहीं उठ पाते। ऋषि ने सुन लिया, लेकिन चुप रहे। थोड़ी देर बाद राजा जनक आ गए और याज्ञवल्क्य ने प्रवचन प्रारंभ कर दिया।
प्रवचन शुरू हुए कुछ ही पल बीते थे कि यकायक वहाँ शोर मच गया, अरे, भागो-दौड़ो, नगर में आग लग गई है। विशाल अट्टालिकाएँ धू-धू कर जल रही हैं। राजमहलों में भी आग लग गई है। इतना सुनना था कि प्रवचन सुन रहे लोग वहाँ से भागकर नगर की तरफ चले गए। केवल राजा जनक वहाँ बैठे रहे । याज्ञवल्क्य ने राजा से कहा, राजन् ! आपका महल जल रहा है, आप नहीं जा रहे ? राजा ने कहा, मिथिला जल रही है तो इसमें मेरा क्या जल रहा है। मैं किसे बचाने जाऊँ? जिन्हें बचाना है, वे ख़ुद समर्थ हैं। प्रवचन चलता रहा। कोई आधे घंटे बाद सभी लोग पुनः प्रवचन-स्थल पर लौट कर आए। पता चला कि किसी ने आग की अफवाह फैला दी थी। लोगों ने देखा कि ऋषि अमृत वाणी से राजा को लाभान्वित कर रहे हैं। उनकी समझ में आ गया कि ऋषि प्रवचन शुरू करने से पहले राजा का इंतज़ार क्यों कर रहे थे। __ कोई भी संत पात्र को ही शिक्षा दिया करता है। उपदेश देने के लिए उन्हें सही आदमी की ज़रूरत होती है। केवल भेड़ों को एकत्र करने से कुछ नहीं होता। एक भेड़ जाएगी, तो शेष भी उसके पीछे चली जाएँगी। भीड़ नहीं चाहिए। सत्पात्र एक ही पर्याप्त है। भीड़ तो मदारी का खेल देखने भी एकत्र हो जाती है लेकिन ज्यों ही खेल ख़त्म होता है, भीड़ छंट जाया करती है। ____एक ज्योतिषाचार्य ने विद्वानों को हरा दिया। उसके घर पर लोगों की भारी भीड़ रहने लगी। एक दिन वह अपने गुरु के पास गया। कहने लगा - गुरुदेव आज मैं जो कुछ हूँ, आपकी वजह से हूँ। मेरे घर के बाहर दिनभर भीड़ रहती है, लेकिन आप कभी मेरे यहाँ नहीं आते। इसका कारण क्या है ? गुरु ने कहा - वत्स, कारें तो वेश्या के घर के बाहर भी बहुत खड़ी रहती हैं। रंडी बेचे शील को, पंडित बेचे ज्ञान; सत्पुरुषों के सामने
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