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________________ बता सकता है, उसके सिर पर कितने बाल हैं ? सारे शिष्य चुप थे। सिर्फ़ एक शिष्य ने हाथ ऊपर उठाया। गुरु प्रसन्न हुए, चलो कोई तो है जो जानता है। गुरु ने उसे उत्तर बताने को कहा। शिष्य ने जवाब दिया, मेरे सिर पर 11 लाख, 11 हज़ार 111 बाल हैं । गुरु हैरान उन्होंने फिर पूछा, तुमने इतने बाल गिने कैसे ? शिष्य ने कहा, गुरुदेव आपने एक ही सवाल पूछने का वादा किया था, दूसरे का जवाब नहीं दिया जा सकता । यह हुआ तर्क-वितर्क। इसमें पड़ोगे, तो ज्ञान की मिट्टी पलीत ही करोगे । शास्त्रों का अपमान करोगे। हमारे पवित्र शास्त्र जीने की कला सिखाते हैं। इनमें तर्क-वितर्क के लिए कोई स्थान नहीं है। महावीर ने अनेकांत का सिद्धांत दिया। मैं भी ठीक हूँ, तुम भी ठीक हो। दोनों की बात में सच्चाई हो सकती है । व्यक्ति गुणानुरागी बन जाए, तो उसे हर जगह अच्छी चीज़ मिल जाएगी। 1 एक आदमी संत के पास गया। पूछने लगा - महाराज, मैं अधम हूँ, नीच हूँ, आप मेरा उद्धार करें । संत ने कहा, पहले एक काम करो। अपने गाँव में जाकर देखो, तुम्हें तुमसे भी अधम, नीच कौन मिलता है ? वह गाँव गया। गाँव में प्रवेश करते ही उसे एक कुत्ता नज़र आया। उसे लगा, यह उससे भी ज़्यादा नीच है। लेकिन फिर विचार किया, तो लगा कि यह कुत्ता अपने मालिक के प्रति वफ़ादार है। सो कुत्ता मुझसे ज़्यादा अधम नहीं है । वह आगे बढ़ा। उसे काँटों भरी झाड़ी दिखी । लगा, यह कांटे किसी काम के नहीं हैं, लोगों के बदन में चुभ जाएँ तो खून निकल आता है। लेकिन थोड़ा आगे जाते ही उसे एक खेत के चारों तरफ काँटों की बाड़ दिखाई दी। उसे समझ आया, ये काँटे भी किसी के काम आ रहे हैं। लौटकर उसने गुरु से कहा- मुझसे नीच कोई नहीं मिला । गुरु ने उसे गले लगा लिया, और कहा- तुम मेरे शिष्य बनने योग्य हो, तुम्हारा तो उद्धार अपने आप हो गया। जो अपने आपको सबसे अधम, नीच समझे; वही शिष्य बन सकता है। जो अपने में अवगुण और दूसरों के गुण ही देखे, वही सच्चा शिष्य और साधक बन सकता है । ज्ञान तर्क-वितर्क से नहीं आता, किताबों से नहीं आता । ज्ञान तो जीवन की किताब पढ़ने से आता है। अपने आपको पढ़ो, ख़ुद का मूल्यांकन करो। भौतिक शिक्षा भौतिक जीवन की आवश्यकताएँ पूरी करने के काम आ सकती हैं, लेकिन आध्यात्मिक शिक्षा जीवन की दिशा बदल सकती है। आध्यात्मिक उन्नति तभी हो सकती है, जब व्यक्ति ख़ुद के अवगुणों को पहचाने। दुनिया में अनेक ऐसे ज्ञानी हुए जो कभी स्कूल नहीं गए, लेकिन उनके लिखे ग्रंथों पर आज लोग पीएचडी करते हैं । उन्होंने अपनी सधुक्कड़ी भाषा में जो कुछ कहा - उससे लाखों का भला हो रहा है। इसलिए अपनी आत्मा से संवाद करें । Jain Education International 149 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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