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________________ पात्र में अपना सारा ज्ञान उँडेलने को तत्पर हो उठते हैं। धरती पर यदि पानी की प्यास पूरी तरह जाग उठी है, तो बादल बरसेंगे ज़रूर; वे किसी को प्यासा नहीं रखेंगे। यमराज ने कहा – 'हे प्रियतम! जिसको तुमने पाया है, यह बुद्धि तर्क से नहीं मिल सकती। यह तो दूसरे के द्वारा कही हुई ही आत्म-ज्ञान में निमित्त होती है। सचमुच ही तुम उत्तम धैर्य वाले हो। हे नचिकेता, तुम्हारे जैसे पूछने वाले ही हमें मिला करें।' यमराज नचिकेता जैसा ज्ञान का प्यासा शिष्य पाकर प्रसन्न थे। नचिकेता का त्याग, निर्मोह-दशा देख प्रफुल्लित हो गए। यमराज ने कहा - तुमने स्वर्ग का राज्य तक ठुकरा दिया, यह तुम्हारी बुद्धि केवल शास्त्रों को पढ़ने से नहीं आने वाली। यह तो उन्हीं के भीतर पैदा होती है जिनके भीतर जिज्ञासा जाग जाती है। अतिमुक्त राजकुल में जन्मा था, लेकिन संन्यास ले लिया। निवृत्ति के लिए जंगल गया होगा। वहाँ छोटे-छोटे नाले बह रहे थे। उसने अपना काष्ठ पात्र पानी में छोड़ दिया - ओह, मेरी नैय्या तैर रही है। तब काष्ठ पात्र दिमाग से उतर गया। धन्य है प्रभु, मेरी नैय्या आपने पार लगा दी। आठ वर्ष में ही अतिमुक्त मुक्त हो गया। अधिकांश लोगों में अस्सी साल की उम्र में भी तिरने के भाव पैदा नहीं होते। ऐसे लोग महाराज बन जाएँगे तब भी वही उपधान, प्रतिष्ठा और पदयात्रा में लगे रहेंगे। वही घाणी के बैल का सफर। घूमने का क्रम जारी रहेगा। दुनिया अद्भुत है, इसे समझने वाले ही समझ सकते हैं। बाकी तो पहले से ही डूबे थे और अब भी डूबे ही रहेंगे। इस भव से पार लगने के भाव सौभाग्य से ही आते हैं। पत्नी की सेवा खूब कर ली, पति के लिए भी काम खूब कर लिया, अब कुछ सेवा अपनी भी कर लो। ख़ुद को भी पार लगा लो। औरों की सेवा खूब की, ख़ुद की सेवा याद ही न आई। ख़ुद को तारना ख़ुद की सबसे बड़ी सेवा है। यमराज कहते हैं – 'हे प्रियतम! तुमने जिस बुद्धि को उपलब्ध किया है, वह तर्क से नहीं मिल पाती। इसमें बड़ी माथाफोड़ी है। ज्ञान की चर्चा मैं उससे करता हूँ जो जिज्ञासु हो। प्यासा हो तो उसे पानी पिलाना धन्यता का आनन्द देता है। बिना प्यास किसी को पानी नहीं पिलाया जा सकता। उसे नदी के पास ले जाकर भी खड़ा कर दोगे, तब भी वह पानी नहीं पीएगा।' __ आत्म-ज्ञान तर्क से नहीं मिल पाता। कबीर ने कहा था, ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय । यहाँ लिखा-लिखी से काम नहीं चलता, यहाँ तो कबीर की भाषा में चलना पड़ता है। ये कबीर हैं, यहाँ तर्क से आत्म-बुद्धि को प्राप्त नहीं किया जा सकता। एक गुरु ने शिष्यों से कहा, कल सब लोग तैयार होकर आना, मैं एक ही प्रश्न पूछकर तुम्हारी परीक्षा लूँगा। अगले दिन सारे शिष्य गुरु के सम्मुख मौजूद थे। गुरु ने पूछा, कोई 148 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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