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'हे नचिकेता! तुम धन्य हो। तुम्हारे जैसे जिज्ञासु शिष्य ही हमें उपलब्ध हुआ करें।' ऐसे निर्लोभी, निर्मोही शिष्य ही आत्म-ज्ञान के बारे में जानने के अधिकारी हुआ करते हैं। नचिकेता जैसे अनासक्त ही मृत्यु का रहस्य जानने की जिज्ञासा रख सकते हैं और जो जिज्ञासा रखता है, उसे उसका समाधान भी मिलता है।
तब यमराज ने नचिकेता से जो कुछ कहा, कठोपनिषद् में उसे यूँ कहा गया: 'जो बहुतों को तो सुनने को भी नहीं मिलता, जिसको बहुत से लोग सुनकर भी नहीं समझ सकते, ऐसे गूढ आत्म-तत्त्व का वर्णन करने वाला महापुरुष आश्चर्यमय है। उसे प्राप्त करने वाला भी बड़ा कुशल कोई एक ही होता है और जिसे तत्त्व की उपलब्धि हो गई है, ऐसे ज्ञानी महापुरुष के द्वारा शिक्षा प्राप्त किया हुआ आत्म-तत्त्व का ज्ञाता भी आश्चर्यमय है।'
__ आत्म-तत्त्व और इसका संदेश देने वाला, दोनों ही संसार में दुर्लभ हैं। मीठी-मीठी बातें करने वाले बहुत से मिल जाएँगे, लेकिन सच्ची बात कहने वाला दुर्लभ है। आत्म-ज्ञान को जीना तो दूर, उसके बारे में कहने वाले भी नहीं मिलते। जिस व्यक्ति को भोगों में रस आता है, उसे योग में रस कैसे आएगा? वह सुबह क्यों उठेगा? घूमने क्यों निकलेगा?
यमराज कहते हैं - 'आत्म-ज्ञान का उपदेश देने वाला और सुनने वाला, दोनों ही सद् शिष्य कहाँ मिला करते हैं ? इनका मिलना दुर्लभ होता है।' याद रखें, उपदेश वह सार्थक नहीं होता जिसे सुनने के बाद कोई तारीफ़ करे, वाह, क्या बात है, मजा आ गया। असली उपदेश वह होता है जिसे आदमी सुनकर एकांत में जाए, कुछ देर अकेला बैठे और विचार करे कि यह बात क्यों कही गई। जो बात हमारी अंतआत्मा को हिला दे, वही उपदेश सार्थक होता है, अन्यथा पर उपदेश बहुत कुशल तेरे।'
ज्ञान वह जो आदमी को गंभीर बनाए, उसमें प्रेरणा जगाए। जरा सोचो, कहाँ से आए हो, कहाँ जाओगे। यह संसार तो संयोग है। यहाँ पत्नी भी संयोग है और पति भी। सब यहीं छूट जाएँगे क्योंकि शरीर तो मरणधर्मा है। जब शरीर का ही ठिकाना नहीं रहेगा, तो फिर ये जमीन-जायदाद, धन-संपत्ति किस काम आएँगे। कोई ज्ञानी तो यह नहीं कहेगा कि यह जमीन मेरी, जायदाद मेरी है।
यह बड़ा अद्भुत युग है। यहाँ कहीं अच्छे श्रोता नहीं मिलते, तो कहीं अच्छे संदेश देने वाले उपलब्ध नहीं होते। भोग, धन, बाहर का लेन-देन इतना प्रभावी हो गया है कि आत्मा जैसी बात उठाना बेवकूफी-सा लगता है। लोग अमीर हो गए हैं लेकिन धर्म से उनका कोई लेना-देना नहीं रहा। मंदिर तभी जाते हैं, जब मुसीबत में फँसते हैं। विद्यार्थी परीक्षा के समय भगवान के प्रसाद चढ़ाता है, तो राजनेता चुनाव के समय मंदिर
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