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कोई व्यापारी बनना चाहता है, तो उसे दुकान खोलनी ही पड़ती है । ग्राहकों से मगजमारी करनी ही पड़ती है। इसी तरह किसी को आत्म-साक्षात्कार करना है, तो गृहस्थी के मोह-जाल से निकलना ही पड़ेगा। उस तत्त्व को प्रधानता देनी हो होगी, जो आत्म-तत्त्व कहलाता है ।
साधना के मार्ग पर चलने वाले को अपने मन का कलश खाली करके साथ लेना ही होता है । ब्रह्म-चेतना, आत्म - चेतना सबके भीतर समाहित रहती है। ऐसा आदमी कुछ भी करे, उसके भीतर एक प्यास रहती है - आत्म-चेतना की तलाश की प्यास । यह जिज्ञासा ही साधक की प्रेरणा बनती है।
कोई आदमी साधना के मार्ग पर नहीं चल रहा है, तो इसका अर्थ है कि अभी तक उसके भीतर प्यास पैदा नहीं हो पाई है। कुछ पाने के लिए किया जाने वाला प्रयास इस बात पर निर्भर करता है कि उसके भीतर की प्यास कितनी है । किसी को प्यास लगी होगी, तो वह सारे काम छोड़कर पहले अपना गला तर करना चाहेगा। पानी माँग कर पीएगा। कहीं यूँ ही पानी नहीं मिलेगा, तो पैसे खर्च करके भी पीएगा । आखिर प्यास तो बुझानी ही है । वह तब न तो पानी पिलाने वाले की जाति पूछेगा और न कोई और सवाल उसके दिमाग में आएगा । उस समय तो उसे सामने वाले के हाथ में पकड़ा पानी का कलश दिख रहा होगा ।
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एक ब्राह्मण किसी गाँव में पहुँचा । वह लंबा सफर तय करके आया था । उसने गाँव में प्रवेश करते ही जो पहला घर मिला, वहाँ जाकर पानी माँगा । घर की मालकिन ने उन्हें पानी पिलाया। पानी पीकर, कुछ देर साँस लेने के बाद उस ब्राह्मण ने उस महिला से उसकी जाति पूछी। महिला कहने लगी, 'पानी तो पी लिया, अब जाति पूछने से क्या फायदा ? फिर भी बता देती हूँ, मैं अछूत हूँ।' प्यास कुछ भी पूछने का मौका ही नहीं देती ।
प्यास है तो आदमी साधना के पथ पर कदम बढ़ा देगा, अन्यथा वह बैठा ही रहेगा और बैठे रहने वालों के पास कुछ भी चल कर नहीं आया करता । नचिकेता यमराज के सम्मुख एक जिज्ञासु बालक की भाँति उपस्थित हुआ है । स्वाभाविक है कि आध्यात्मिक जिज्ञासा होगी, तो कोई भी बिना किसी प्रलोभन में आए, अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहेगा। प्यास यदि पानी की है, तो लड्डू खाने से शांत नहीं होगी । पानी की प्यास, पानी पीने से ही शांत होगी । आध्यात्मिक जिज्ञासा का मामला भी ऐसा ही है ।
यमराज ने नचिकेता के सामने प्रेय और श्रेय, दोनों मार्ग प्रस्तुत किए। उनके बारे गुणावगुण भी बताए । उसे तीन लोकों का राज्य, स्वर्ग की अप्सराएँ तक देने का प्रलोभन दिया, लेकिन वह किसी भी प्रलोभन में न आया। तब यमराज को कहना पड़ा,
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