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जिज्ञासा महत्त्वपूर्ण है । मनुष्य के मन और मस्तिष्क में प्रश्न उठते रहने चाहिए। जितने प्रश्न उठेंगे, दिमाग उनके उत्तर पाने के लिए उतना ही सक्रिय होगा । जिज्ञासा से नए-नए समाधान खोजे जा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति के मन में कोई जिज्ञासा जन्म नहीं लेती है तो समझिए, उस व्यक्ति का जीवन एक सीमित दायरे में आ गया है। वह प्रकाश की ओर नहीं बढ़ रहा । जीवन अंधेरों में ही सिमट रहा है ।
महावीर ने संन्यास लिया, बुद्ध ने जंगल की राह पकड़ी तो आखिर क्यों ? उनके मन में एक आध्यात्मिक जिज्ञासा ने जन्म ले लिया था कि आखिर 'मैं कौन हूँ' ?, 'कहाँ से आया हूँ' ?, 'कहाँ जाऊँगा ?' जैन आगमों में एक पवित्र आगम है आचारांग सूत्र | इसमें महावीर के उपदेशों का सार है। इसमें बताया गया है कि व्यक्ति नहीं जानता कि 'वह कौन है ?', 'कहाँ से आया है ?" कहाँ जाएगा ?' लेकिन वह जान लेता है गुरुओं से, शास्त्रों से । साधना की शुरुआत कहाँ से होती है, जिज्ञासा से । विद्यार्थी के विद्यार्जन की शुरुआत भी होती है जिज्ञासा से ।
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बहुत साल पहले मेरे हृदय में जिज्ञासा जगी कि ' आत्मा है या नहीं ?' मैं दुनिया भर की किताबें पढ़कर उनमें से प्राप्त ज्ञान दुनिया को परोस रहा हूँ। पहले मैं सिर्फ मुनि था लेकिन इस जिज्ञासा ने मुझे साधक बना दिया। तब मैं कर्नाटक राज्य में स्थित हम्फी की गुफाओं में गया। वहाँ एक दिव्य आत्मा रहा करती थी, जिन्हें सब काकी माँ कहते थे। उन्होंने साधना में मेरी बहुत मदद की। वे इस राह पर मेरे लिए बहुत उपयोगी बनीं। जिज्ञासा यही थी कि आत्मा नाम की कोई चीज़ है भी या नहीं ? कहीं ये सिर्फ किताबी बातें तो नहीं हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि हम्फी की उन गुफाओं में मैंने जीवन का प्रकाश उपलब्ध किया। जीवन से सीधा साक्षात्कार किया। आज मैं श्रद्धापूर्वक, विनयपूर्वक, ज्ञानपूर्वक, बोधपूर्वक यह कह सकता हूँ कि प्राणी मात्र के भीतर एक चैतन्य - शक्ति, आत्म-शक्ति समाहित है । जो इसे समझ ले, वह उसके करीब हो जाता है; जो नहीं समझ पाता, वह दुनिया के मोह पाश में उलझा रह जाता है ।
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हर व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार कर सकता है । प्रत्येक व्यक्ति जिज्ञासु बालक नकर ज्ञान की प्राप्ति कर सकता है। एक व्यक्ति व्यापारी बनकर व्यापार की ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकता है । इसी तरह एक व्यक्ति साधना के मार्ग पर क़दम बढ़ाकर उस मंजिल को उपलब्ध कर सकता है जिसके बारे में वह सोचता है। धन व्यापार का परिणाम है तो आत्म-साक्षात्कार साधना का प्रतिफल है। जो चलेगा, वह आगे बढ़ेगा। केवल बातें करने वाला वहीं खड़ा रह जाएगा। हिमालय के बारे में केवल बातें ठोकते रहने से भला कोई हिमालय पर चढ़ पाया है ? विद्यार्जन करना है तो विद्यार्थी तो बनना ही पड़ेगा, विद्यालय में दाखिला लेना ही होगा ।
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