________________
13
जिज्ञासाः आत्मबोध का पहला कदम
हमारे मानवीय जीवन में आध्यात्मिक प्रगति के लिए जिस पहले सोपान की आवश्यकता होती है, वह है - इंसान के मन में जगने वाली आध्यात्मिक जिज्ञासा। जीवन में जिज्ञासा का वही मूल्य है जो किसी प्यासे के लिए पानी का होता है। प्यास
और जिज्ञासा समानार्थक शब्द हैं । प्यास हो, तो पानी मूल्यवान हो जाता है और जिज्ञासा हो, तो समाधान बेशक़ीमती हो जाया करता है। जरा सोचिए, नचिकेता यमराज के सामने उपस्थित हुए, तो उनकी उपस्थिति सार्थक हो गई। हमारे सामने यमराज आ जाएँ, तो हम शायद उनसे मुँह छिपाते फिरेंगे क्योंकि हम मृत्यु को सामने देख भयभीत हो जाया करते हैं । नचिकेता एक आत्म-जिज्ञासु की भाँति यमराज के सामने उपस्थित होकर अपनी जिज्ञासाओं को शांत करना चाहता है।
न्यूटन ने एक पेड़ से टूट कर नीचे गिरे सेब को देखा, तो उसके मन में एक जिज्ञासा ने जन्म लिया। उसी समय एक बहुमंजिला इमारत से एक गेंद गिरी और वापस ऊपर उठ गई। इस घटना ने उनके भीतर पैदा हुई जिज्ञासा को और बढ़ा दिया।न्यूटन की इसी जिज्ञासा ने विश्व को गुरुत्वाकर्षण का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत दिया। न्यूटन ही नहीं, दुनिया के प्रत्येक वैज्ञानिक अनुसंधान, आविष्कार और सिद्धांत के पीछे जिज्ञासा का ही हाथ रहा है।
नचिकेता एक जिज्ञासु बालक की भाँति यमराज के पास पहुँचे हैं। हर जिज्ञासु बालक निरन्तर सीखता रहता है । जो माता-पिता अपने बच्चों की जिज्ञासाओं को शांत नहीं करते, वे बच्चों का भला नहीं करते। आदमी को जीवन भर जिज्ञासु बने रहना चाहिए ताकि रोज नए सोपान की यात्रा हो सके, रोज नए आविष्कारों का रास्ता खुल सके। जिज्ञासा ने ही हमें नित्य नये आविष्कार दिए हैं जिनसे हमारा जीवन सुखमय हो सका है।
142
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org