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________________ मेरा कुर्ता और मेरा शरीर यहीं रह जाएगा।' दर्जी के बेटे ने कहा - 'अंकल, अगर आपको यह बोध हो ही गया है कि सब-कुछ यहीं छूट जाएगा तो फिर आप मोह-माया क्यों पाल रहे हैं ? धन से अपना मोह हटाइए और धर्म से अपना नाता जोडिए।' सेठ को समझ आ गई। मोह टूट गया। उन्होंने जनता की भलाई के लिए एक चेरिटेबल ट्रस्ट बना दिया। अंतिम घड़ियों में भगवान का भजन करते हुए उन्होंने नश्वर देह का त्याग किया। लोगों ने देखा कि अंतिम घड़ी में सेठ की आँखों में प्रायश्चित के आँसू थे। सेठ के चारों ओर प्रकाश बरस रहा था। कहने के नाम पर उनकी मृत्यु भले ही हो गई हो, पर वास्तव में वे मृत नहीं, अमृत हो गए, मुक्त हो गए। यह सच है कि कोई चीज़ साथ जाने वाली नहीं है। गीता कहती है, क्या साथ लेकर आए थे और क्या साथ लेकर जाओगे। तुम्हारा क्या है ? जो कुछ लिया, यहीं से लिया, यहीं छोड़कर जाना है। क्यों न ऐसे कर्म करो कि प्रेय और श्रेय में भेद करना आ जाए। कहीं ऐसा न हो कि प्रेय के पथ पर श्रेय की हत्या हो जाए। हमारे कल्याण की हत्या नहीं होनी चाहिए। आँख खुल जाए, तो संसार में रहकर भी मुक्ति का कमल खिला सकते हैं; अन्यथा भोग में उलझे रहोगे और आत्म-ज्ञान की बजाय धन और रमणियों की चाह करते रहोगे। मुक्ति चाहिए, तो प्रयास करने होंगे। जो कर्म करते हैं, वे परिणाम के बारे में सोचते हैं। जो परिणाम के बारे में सोचते हैं, वे ही राजचन्द्र बन सकते हैं। 141 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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