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________________ हैं, जिनमें चेतना जग जाती है। तुम्हारी चिता जले, उससे पहले अपनी चेतना जगा लो। तुम्हारी अस्थियाँ गंगाजी में बहाई जाएँ, उससे पहले अपनी आस्थाएँ जगा लो। दशरथ के सिर पर एक बाल सफेद आ गया था, तो वे संसार से विरक्त हो उठे थे। विश्वामित्र ने दशरथ की चेतना के तार छेड़ते हुए कहा था कि राजन् ! मैं भी कभी मोह में पड़ गया था। मेनका के क्षणिक मोह में मैं अपनी सारी तपस्या भंग कर बैठा। विश्वामित्र के शब्दों से दशरथ की चेतना जगी। उन्होंने राम को गद्दी सौंपना तय कर लिया और खुद संन्यस्त होकर प्रभुजी की प्रीत में निकलना तय कर लिया - केश पके, तन प्राण थके, अब राग-अनुराग को भार उतारो। मोह महामद पान कियो, अब आतम ज्ञान को अमृत ढारो॥ जीवन के अंतिम अध्याय में त्याग करो और दीक्षा धारो। पुत्र को सौंप के राज और पाट, करो तप आपनो जनम सुधारो॥ ज़्यादा मोह-माया में मत उलझो। अपनी मुक्ति की व्यवस्था में लगो। कहीं कोई कैकई आपकी दुर्गति न कर बैठे। कहीं ऐसा न हो कि नश्वर चीज़ों और संबंधों के मोह में हम जन्म-मरण के चौरासी के चक्कर में ही भटकते रहें। ___ कहते हैं – एक सेठ मरने वाला था। पड़ोसी दर्जी का लड़का वहाँ मौजूद था। उसने सेठ की जीवन के प्रति मुर्छा देखी तो उसने उसे सीख देने की सोची। उसने सेठ से कहा, 'मेरे पिताजी कुछ दिन पहले स्वर्ग सिधार गए थे। उन्हें इन्द्रदेव ने सूट सिलने को कहा है। समस्या यह है कि पिताजी सूई तो यहीं भूल गए। आप वहाँ जाने वाले हैं, कृपया यह सूई उन्हें दे दीजिएगा।' सेठ ने सूई अपने कुर्ते में खोस ली। फिर उसे ख्याल आया, अरे, मरते ही कुर्ता तो यहीं रह जाएगा। उसने सूई अपनी बाँह में चुभो ली।दर्द तो हुआ, पर पड़ोस का मामला था इसलिए दर्द भी सहन कर लिया। थोड़ी देर में ख्याल आया - शरीर के साथ सुई स्वर्ग तक नहीं जा पाएगी क्योंकि शरीर तो यहीं ख़ाक हो जाएगा। रात भर विचलित अवस्था रही। सेठ ने सुबह दर्जी के लड़के को बुलाया और सुई देते हुए कहा - 'भाई, माफ करना। मैं यह सुई अपने साथ नहीं ले जा सकता क्योंकि 140 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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