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________________ हूँ, जहाँ पुण्यों की प्राप्ति होती है, जहाँ संन्यास का पथ मिला करता है, आत्म-ज्ञान का उजाला मिला करता है । इस बारे में लंबा संवाद होता है। थक-हार कर माता-पिता जम्बू से कहते हैं, 'चलो तुम संन्यास ले लेना, लेकिन हमारी एक इच्छा पूरी कर दो।' वे सोचते हैं कि एक बार संसार-सुख ले लिया, तो फिर बात बन जाएगी। इधर जम्बू सोचता है कि माँ-बाप की एक इच्छा पूरी करने में क्या हर्ज है, संन्यास तो विवाह के बाद भी लिया जा सकता है । जम्बू का विवाह एक या दो नहीं, आठ सुन्दर युवतियों से कर दिया जाता है । सुहागरात को जम्बू सभी आठों पत्नियों को सामने बिठाकर समझाता है। पत्नियाँ भी कमाल की निकलती हैं। वे कहती हैं, अब तो आपके साथ ही जीवन की डोर बँध गई है । संसार में नहीं तो वैराग की राह पर ही सही, लेकिन चलेंगी आपके साथ । बात आगे बढ़ती है। उन युवतियों के माता-पिता भी यह जानकर वैरागी हो जाते हैं और संन्यास लेने का फैसला करते हैं । इधर जम्बू कुमार के विवाह में आए धन को लूटने की नीयत से एक डाकू अपने पाँच सौ साथियों के साथ जम्बू कुमार के महल की छत पर बैठा जम्बू और उनकी पत्नियों के संवाद को सुन लेता है। उसका भी मन बदल जाता है, उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है । वह सोचता है - कैसा पापी का जीवन जी रहे हैं। एक यह आदमी है, जो सुहागरात के दिन अपनी पत्नियों के साथ वैराग्य की राह पर चलने को तत्पर है और एक हम हैं कि यह बेशक़ीमती जीवन चोरी-चकारी में ही बिता रहे हैं । वह चोर अपने साथियों के साथ संन्यास लेने का फैसला करता है। वह भीतर प्रवेश करता है और जम्बू कुमार को कहता है, मैं अपने साथियों के साथ साधुत्व की राह पर चलने को तैयार हूँ । और तब ऐतिहासिक दीक्षा होती है; एक साथ 527 लोग संन्यास लेते हैं। एक पल में ही उनमें संन्यास का उदय हो जाता है । सब-कुछ अनुकूल था और ऐसे में यश- - वैभव को ठुकराने वाले ही सच्चे संन्यासी हो सकते हैं । तब वे सचमुच नचिकेता हो जाते हैं, जिसने तमाम सुखों का प्रलोभन ठुकरा दिया। नचिकेता के सामने यमराज ने प्रलोभन के सौ-सौ निमित्त खड़े किए, लेकिन वह अनासक्त और वैरागी बना रहा । नचिकेता की परीक्षा लेते समय यमराज को अहसास हो गया कि नचिकेता ज्ञान का अभिलाषी है। उसमें अभीप्सा है। ऐसे शिष्य को तृप्त करना मेरा दायित्व है क्योंकि अविद्या में रहने वाले ठोकरें खाते रहते हैं- अंधा अंधे नूं ठेलिया, दोनों कूप पड़े। ऐसे विद्या के अभिलाषी कहाँ मिलते हैं ? ईमानदार तभी तक रहता है, जब तक उसे बेईमान बनने का मौका न मिले। शांति में तो सभी शांत रह सकते हैं, लेकिन अशांति का वातावरण बनने पर भी जो शांत रह सकता है, वही असली वीर Jain Education International 136 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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