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________________ यमराज कहते हैं, विद्या और अविद्या अत्यन्त विपरीत स्वभाव वाली हैं। एक ब्रह्म-विद्या, आत्म-विद्या है, तो दूसरी भौतिक विद्या। विद्या इंसान के कल्याण के लिए है, वहीं अविद्या इंसान को मूर्छा और मूढ़ता की ओर ले जाया करती है। महावीर ने इसी अविद्या को मिथ्यात्व का नाम दिया। आचार्य शंकर ने इसे माया का नाम दिया। यमराज नचिकेता से इतने प्रभावित थे कि उसे कहने लगे, 'हे नचिकेता ! मैं तुम्हें सच्चा विद्याभिलाषी मानता हूँ। तुम किसी प्रलोभन में नहीं आए। विद्या का रास्ता, आत्म-ज्ञान का रास्ता आसानी से नहीं खुला करता।' यमराज ने नचिकेता के सामने राग के अनेक निमित्त खड़े किए, लेकिन नचिकेता विरक्त बने रहे। दुनिया के परम सत्य को प्राप्त करने की उनकी मुमुक्षा गहन थी। नचिकेता जानते थे कि दो नावों में सवारी करने से वे कभी किनारे नहीं पहुँच पाएँगे। तुलसीदास ने कहा है - जहाँ काम, तहाँ राम नहीं। दोनों साथ नहीं रहते। ऐसा नहीं हो सकता कि थोड़ा राग रखो और थोड़ा वैराग भी चाहो । या तो पूरे संसारी बन जाओ या फिर वैराग की राह के राही। आजकल मिक्सचर का जमाना है, नमकीन भी खट्टा-मीठा दोनों मिलाकर बनाया जाने लगा है। ऐसी स्थिति में तो मनुष्य त्रिशंकु बन जाया करता है। वैराग का मार्ग समझाता है कि यह जगत् मरणधर्मा है। सब यहीं छूट जाने वाला है। कोई संबंध शाश्वत नहीं रहेगा। प्यार से बोलते हो, तो सबको अच्छा लगता है, नज़र फेरते ही संबंधों की असलियत सामने आ जाती है । परस्पर एक-दूसरे की तारीफ़ करते हैं, तो सब अच्छा लगता है। थोड़ा-सा टेढ़ा बोल दो, तो बीस साल के संबंधों पर एक मिनट में पानी फिर जाता है। __ऐसा हुआ, एक ऊँट की शादी में गधा मेहमान बनकर आया। ऊँट को खूब सजाया गया था। गधे ने कहा, अहो रूपम्, वाह ! क्या रूप है ? ऊँट महाशय आप तो अँच रहे हो। ऊँट ने भी गधे से कहा, अहो ध्वनि, वाह! क्या आवाज है आपकी। परस्परं प्रशंसति । यह दुनिया का रिवाज है। हम जब तक किसी की प्रशंसा किया करते हैं, तब तक वह हमारे अनुकूल रहता है। इसलिए आत्म-विद्या की राह पर चलना है, आत्म-ज्ञान प्राप्ति की राह पर चलना है, तो राग के दलदल से बाहर निकलना होगा। अनासक्ति के फूल खिलाने होंगे। प्रकृति परिवर्तनशील है। सब यहीं छूट जाएगा। विद्यावान व्यक्ति जीवन के तत्त्व को समझने का प्रयास करता है। यही मार्ग है, जो हमारे भीतर वैराग्य को जन्म देता है। वैराग्य कहाँ से आता है ? किसी को जन्म लेते देखा, किसी को मरते देखा, तो बोध होता है। परिणाम के बारे में चिंतन-मनन करेंगे, तो उसी की कोख से वैराग्य पैदा होगा। 134 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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