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दूसरों का बुरा सोचने वालों को आखिर ऐसा ही फल मिलता है। होशियारी काम नहीं आई। दूसरों के कल्याण का ध्यान न रखेंगे, तो अपना खुद का कल्याण कैसे होगा? यही जगत की रीत है। यमराज ऐसे ही आते हैं। वे जिंदगी का डिब्बा काट देते हैं। इसलिए विवेक होना चाहिए कि कब, क्या करना है। किस समय क्या खाना है, क्या नहीं खाना। आजकल एक फैशन चल पड़ा है, लोग सर्दी में शादी-समारोह में आइसक्रीम खाते हैं। भला यह भी कोई बात हुई। ऐसे लोगों के लिए उनका शरीर एक मशीन के सिवा और कुछ नहीं है। इस मशीन में दिनभर कुछ-न-कुछ डालते ही रहते हैं। इसके दुष्परिणाम भी उन्हीं को भुगतने पड़ते हैं। आजकल की लड़कियाँ इतने टाइट कपड़े पहन कर चलती हैं, मानो ये कपड़े उनके शरीर पर ही सिले गए हों। टाइट जींस
और टाइट टी शर्ट पहनकर वे किस आधुनिकता का प्रचार करना चाहती हैं। स्थिति यह हो जाती है कि इस तरह की जींस में उन्हें बैठना तक मुश्किल हो जाता है; लेकिन क्या करें, फैशन की मारी जो ठहरी। साड़ी संभालनी भारी पड़ रही हो, तो सलवार सूट पहनो। सबसे गरिमामय पोशाक है। लेकिन ये लड़कियां आ बैल मुझे मार' की तर्ज पर ऐसे कपड़े पहनती हैं कि किसी का भी ध्यान भटक सकता है। सलीके के कपड़े पहनो, सलीके का खाना खाओ। हर चीज़ में विवेक रखोगे, तो कहीं कोई समस्या नहीं आएगी। यही श्रेय का मार्ग है। प्रेय और श्रेय में संतुलन रखते ही सब ठीक हो जाता है। ___ यमराज ने भी प्रेय और श्रेय के बारे में नचिकेता की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने उसे धन, स्त्री, राज्य का लालच दिया; लेकिन नचिकेता ने तो श्रेय का ही मार्ग चुनने का फैसला किया। वह देवांगनाओं के प्रलोभन में नहीं आया। वह तो यही कहता रहा, 'हे यमराज, मैं तो श्रेय के मार्ग का अनुयायी हूँ।' तब यमराज कठोपनिषद् में कहते हैं, 'हे नचिकेता! तुमने प्रिय लगने वाले, अत्यन्त सुन्दर रूप वाले समस्त भोगों को भली-भाँति सोच-समझकर छोड़ दिया। तुम इससे प्रभावित नहीं हुए, जिसमें बहुत से मनुष्य फँस जाते हैं।' नचिकेता कोई साधारण बालक नहीं था, इसलिए यमराज के बहकावे में नहीं आया। __ कठोपनिषद् में यमराज नचिकेता को संबोधित करते हुए कहते हैं, 'जो विद्या और अविद्या नाम से विख्यात हैं, वे दोनों अत्यन्त विरुद्ध स्वभाव वाली और विपरीत फल देने वाली हैं। इसलिए मैं तुझ नचिकेता को विद्याभिलाषी मानता हूँ, क्योंकि तुझे बहुत से भोगों ने भी नहीं लुभाया। संपत्ति के मोह से मोहित निरन्तर प्रमाद करने वाले अज्ञानी को परलोक नहीं सूझता। यह प्रत्यक्ष दीखने वाला लोक ही सत्य है, इसके सिवा दूसरा कुछ भी नहीं है - इस प्रकार मानने वाला अभिमानी मनुष्य बार-बार मेरे वश में आता है।'
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