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________________ प्रेय का मार्ग कहता है, दोस्तों के पास जाओ, मटरगश्ती भी करो, टीवी देखो लेकिन श्रेय का मार्ग कहता है - ये सारे कार्य बोधपूर्वक करो। दोस्तों के साथ रहो लेकिन गुलछर्रे उड़ाने से बचो।व्यसनों से बचो। टीवी पर ऐसे धारावाहिक देखो जिससे मनोदशा ठीक रहे। दोस्तों के पास जाओ, तो ऐसे कि न तो उनका समय खराब हो और न ही आपका कोई नुकसान हो। बोध हमें प्रेय और श्रेय में अंतर करना बताता है। विवेक इस मार्ग पर रोशनी का काम करता है ताकि हम सही मार्ग पर जाएँ। अगर हम विवेकपूर्ण तरीके से जीते हैं, तो हम नचिकेता जैसी पात्रता अपने भीतर धीरे-धीरे विकसित कर लेंगे। इंसान के सामने सभी तरह की परिस्थितियाँ आती हैं, लेकिन उन परिस्थितियों से निपटने का हर इंसान का अपना तरीक़ा होता है। एक व्यक्ति को कहीं जाना था। वह रेलगाड़ी में बैठा था। डिब्बा खचाखच भरा था। उसने देखा, एक बुजुर्ग भीड़ में फँसा हुआ है। युवक का विवेक उसे प्रेरित करता है कि या तो वह उस बुजुर्ग को थोड़ा-सा स्थान दे या खुद खड़ा होकर उसे अपने स्थान पर बिठाए । याद रखें कि आखिर हम भी इंसान हैं । जब भी चूक होने लगे, तो ये शब्द बोध बनाए रखेंगे। कभी मूर्छा का उदय हो, तो हम संयम से रहें। मैं मनुष्य हैं. यह बोध रहना ही चाहिए। हम जितना बोध रखेंगे, हमारा स्वार्थ उतना ही कम होता जाएगा। आखिर मैं भी इंसान हूँ - यह बोध रखने से हमारे भीतर अपने आप प्रेय और श्रेय के बीच संतुलन बना रहेगा। मैं क्या हूँ, यह बोध रहे । मैं आत्मा हूँ, इस बात को भूल बैठेंगे, सांसारिक रंग में रंगने लगेंगे, तो समझ नहीं आएगी। मैं देह हूँ, यह समझने के बाद ही देह से उपरत होने की यात्रा प्रारंभ हो पाएगी। एक इंसान है जो ट्रेन में बैठकर भी सबके बारे में सोच रहा है, किसी को परेशान देखकर उसे दूर करने का प्रयत्न करता है। दूसरा यात्री ऐसा भी है, जो केवल अपने बारे में सोचता है। उसे जगह मिल गई, अब दूसरों से क्या लेना-देना। मैंने सुना है, दो दोस्त चढ़े रेल के डिब्बे में। डिब्बा खचाखच भरा था। एक ने दूसरे के कान में धीरे से कहा, देख अभी दोनों के लिए जगह बनाता हूँ। अचानक वह जोर से चिल्लाया, साँप, साँप। डिब्बे में हड़कंप मच गया। कुछ ही देर में पूरा डिब्बा खाली हो गया। दोनों दोस्त दो बर्थ पर लंबी तान कर सो गए, अब चिंता नहीं, मंज़िल पर आराम से पहुँच जाएँगे। सुबह दोनों की आँख खुली तो देखा गाड़ी उसी स्टेशन पर खड़ी थी। डिब्बे से बाहर निकलकर किसी से पूछा, यह गाड़ी चली नहीं क्या? उसने बताया, कल रात इस डिब्बे में एक साँप की सूचना मिली थी।खूब खोज़ने पर भी साँप न मिला, तो इस डिब्बे को ही काट दिया गया, शेष गाड़ी चली गई। 132 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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