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________________ 12 * विवेक ही सच्चा गुरु इसान के जीवन में जिस पहलू की प्रत्येक क़दम, प्रत्येक गतिविधि के साथ आवश्यकता है, वह है विवेक। विवेक किसी भी इंसान का सच्चा शिक्षक होता है, जीवन का सबसे बेहतरीन शास्त्र होता है। विवेक में ही आत्मा का प्रकाश समाहित होता है और विवेक में ही हंसदृष्टि होती है। क्या प्रिय है और क्या श्रेय, क्या ग्रहण करने योग्य है और क्या त्याज्य, क्या उपयोग करने योग्य है और क्या अनुपयोगी, इन स्थितियों में हमें क्या करना चाहिए - इसकी प्रेरणा इंसान को विवेक द्वारा ही ग्रहण करनी चाहिए। इंसान का विवेक ही उसे उपभोग की प्रेरणा दे, तो उसे उपभोग की दहलीज़ पर आना चाहिए। वहीं यदि इंसान का विवेक त्याग की प्रेरणा दे, तो हमें त्याग को गले लगाना चाहिए। क्या उचित है और क्या अनुचित - इसका मूल्यांकन कैसे होगा? क्या किसी अन्य से इसका मूल्यांकन करवाना चाहिए? ऐसा करेंगे, तो वह व्यक्ति अपना नज़रिया उसमें समाविष्ट कर हमें अपनी सलाह देगा। तब सीधा सवाल पैदा होगा कि मूल्यांकन किसके ज़रिए करवाएँ ! स्वयं के ज़रिए, स्वयं के विवेक के ज़रिए। विवेक से बढ़कर न कोई गुरु होता है और न ही कोई न्यायाधीश। विवेक ही मंदिर है, विवेक ही मंदिर का दीपक है, विवेक ही मंदिर की मूर्ति है और विवेक ही मंदिर का भगवान है। आपके पास यदि विवेक है, तो दुनिया भर का सारा ज्ञान आपके पास है। यदि विवेक नहीं है, तो ढेर सारी पंडिताई भी क्या काम की? ज्ञान वह नहीं होता, जो दूसरों को दिया जाए। ज्ञान वह होता है जिसके प्रकाश में जीवन जीया जाए। ज्ञान के प्रकाश में, विवेक की रोशनी में जो मूल्यांकन होगा, वह सबसे अनूठा और अनुपम होगा। कोई अगर हम से पूछे कि हमें अंधकार में जीना चाहिए या प्रकाश में ? तो मैं तो क्या एक मंद बुद्धि बालक भी यह जवाब दे देगा कि हमें प्रकाश में जीना चाहिए। प्रश्न है किसके प्रकाश में ? सूर्य के प्रकाश में? चन्द्रमा के प्रकाश में ? दीपक के प्रकाश में? 129 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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