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________________ 'महाराज आप ख़ुद तो अनाथ हो, मुझे अनाथ समझते हो।' राजा ने कहा, 'हे युवक, तुम नहीं जानते, मैं इस नगर का राजा हूँ।' युवक ने कहा, 'राजन, मैं ख़ुद एक नगर का राजकुमार था। एक बार मैं रोगों से घिर गया। वैद्यों ने जवाब दे दिया। रातभर चिंतन करता रहा। मैंने प्रभु से प्रार्थना की कि मेरी पीड़ा दूर हो जाए। यदि कल मेरे पास जीवन रहा, तो मैं सुबह ही संन्यासी हो जाऊँगा। जाने कब आँख लग गई। सुबह उठा तो देखा, एकदम स्वस्थ हो चुका था। बस, मैं निकल पड़ा। हे राजन्, तुम भी मेरी तरह भूल कर रहे हो। सबका नाथ एक ही है, ऊपरवाला। इसलिए अपरिग्रह की राह पर चल पड़ा; अब मुझे राजमहल की ज़रूरत नहीं है।' दुनिया में सारे संबंध विरासत के हैं। बेटी जंवाई की विरासत है। बेटा बह की विरासत है। हमारा शरीर श्मशान की विरासत है । सब यहाँ चार दिन का खेल है। व्यर्थ का मोह पालने की बजाय कमल के फूल की तरह जीओ। परिग्रह उतना ही करो, जितना आवश्यक है। जीवन का संचालन हो जाए, उतना ही बटोरो। हमारी आसक्तियाँ जितनी कम होती चली जाएँगी, हम आत्म-ज्ञान की राह के पथिक बनते चले जाएँगे। एक ऐसे पात्र बन जाएँगे, जिसमें आत्म-ज्ञान का अमृत उँडेला जा सकेगा। गुरु हमारी पात्रता को निखार सकते हैं, लेकिन पात्रता तो हमें ही पैदा करनी होगी। फिर इस खाली कलश को गुरु भर देंगे। यमराज ने भी नचिकेता की पात्रता को परखते हुए उसे अंततः मृत्यु का रहस्य बताने की स्वीकृति दी। आखिर क्या है आत्मा? कहाँ से आती है, कहाँ रहती है और कहाँ चली जाती है। क्या है मृत्यु का रहस्य? यमराज हमें समझाने का प्रयास कर रहे हैं । यह हम अगले पृष्ठों में पढ़ेंगे। 128 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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