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________________ नचिकेता का अनुकूलता के बावजूद प्रलोभन में न आना ही उनके दृढ़ चरित्र की निशानी है। यह नचिकेता की सच्ची मुमुक्षा है। नचिकेता ने अपने आप को यमराज के सामने अनासक्त प्राणी के रूप में प्रस्तुत किया। प्रलोभन से मुक्त रखा। आत्म-ज्ञान के रास्ते पर प्रथम बिन्दु है अनासक्ति । जो संसार में रह कर भी निर्लिप्त रहे, आत्मा में रमण करे लेकिन अनासक्त रहे । संसार में जीए, लेकिन बोध रखे कि एक दिन सबको जाना है। सब यहीं रह जाना है। इसलिए संसार का आनन्द लें, पर मोह न रखें। मोह नाम का तत्त्व ही हमें आत्म-ज्ञान प्राप्त करने से वंचित रखता है। आत्म-ज्ञान का साधक व्यक्ति स्वयं को ऐसे रखे, जैसे कोई धाय माँ होती है। वह दूसरों के बच्चों को अपना दूध पिलाकर बड़ा करती है, लेकिन उन बच्चों पर अपना अधिकार नहीं जताती। सहज भाव से रहें, जो मिल गया, ठीक है। न मिला, तब भी कोई शिकायत नहीं। कृष्ण ने अवतार लिया, लेकिन वे सबसे बड़े अनासक्त कहलाए क्योंकि उन्होंने सब-कुछ किया, देखा, लेकिन बँधे नहीं। उनके हज़ारों-हज़ार रानियाँ और सखियाँ थीं, उन्होंने महाभारत रचा लेकिन उनकी आसक्ति किसी के प्रति नहीं थी। पत्नी पीहर जाती है, पति से चार दिन भी नहीं रहा जाता। यही आसक्ति है, बंधन है। व्यक्ति चीज़ों को पकड़ कर बैठा रहता है, अमुक चीज नहीं मिली, तो ज़िंदगी अधूरी लगने लगती है। सब कुछ है, फिर भी मन में कुछ और पाने की तड़प है। इसी का नाम आसक्ति है। आजकल एक चलन चल पड़ा है। किसी की सगाई होती है तो लडका अपनी ओर से लड़की को मोबाइल गिफ्ट कर देता है। अब दोनों लगे रहते हैं बातों में। बातें भी कैसी? निरर्थक, बिना काम की। मेरा तो आग्रह है कि बच्चों की सगाई करें, तो तत्काल विवाह कर दें। कम से कम मोबाइल पर होने वाला व्यर्थ का खर्च और समय का अपव्यय तो बच जाएगा। सबसे बड़ी बात क़ीमती समय बचेगा। इधर सगाई, उधर शादी; ये लो रहो साथ-साथ। मिल गए, तो मन की निकल गई। चलो छुट्टी हुई। न मिले, तो प्यास ज़्यादा उठती है। हनीमून के सपने दिखते हैं । मिल गई, तो मेटर फिनिश हुआ। ध्यान रखो, संसार में रहना बुरा नहीं है, संसार के प्रति आसक्ति बुरी है। राधा कृष्ण के प्रति आसक्त हुई, लेकिन कृष्ण अनासक्त रहे। प्रेम अलग बात है और राग अलग बात । राग मूर्छा है। इस मूर्छा से बाहर निकलें। कमल की तरह निर्लिप्त रहें। यह तभी होगा, जब आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का लक्ष्य होगा। पत्नी-बच्चे अच्छे लगते हैं। प्रेम का मार्ग ही ऐसा है। पत्नी काली है, तब भी सुन्दर लगती है। दिल लग जाए, तो गधी भी परी लगती है। दिल न लगे, तो परी भी गधी लगती है। सुकरात की पत्नी बहुत तेज स्वभाव की थी, लेकिन उन्होंने संतुलन बिठा लिया। वे प्रेय के मार्ग पर भी चले और श्रेय के मार्ग पर भी। 126 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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