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________________ का क्या हाल हो सकता है। लोग अध्यात्म का रास्ता भूल गए हैं। ज़िंदगी ऐशो आराम से कट रही है। आदमी ही क्यों, संतों को भी सुख-सुविधाएँ चाहिए। श्रेय पर कोई चिंतन ही नहीं करता। इसीलिए अध्यात्म का मार्ग छूटता चला जा रहा है। हम लोग अपने साथ ही प्रवंचना कर रहे हैं। एक राजा हुए चित्रसेन । मन में तमन्ना जगी कि दुनियाभर के शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया जाए। उन्होंने सबको एकत्र किया और अपनी मंशा से अवगत कराया। मुनादी कराई गई। अनेक विद्वानों को बुलाया गया। विद्वानों ने कई वर्ष की मेहनत से चार ग्रंथ तैयार किए। इन्हें नीतिशास्त्र, आयुर्वेद, न्यायशास्त्र, अध्यात्म शास्त्र - नाम दिया गया। सभी में एक-एक लाख श्लोक थे। राजा ने कहा, 'ये तो बहुत बड़े ग्रंथ हैं, मुझे तो सार रूप में बताएँ।' विद्वान फिर से बैठे। इस बार उन्होंने एक-एक हज़ार श्लोक में ज्ञान का सार निकाला। राजा ने फिर कहा, 'मेरे पास इतना समय कहाँ है कि इन्हें पढं। मुझे तो संक्षिप्त में बताओ।' तब एक-एक श्लोक में सार निकाला गया। उसमें सब-कुछ आ जाता है। आयुर्वेद में कहा, भोजन तब ही किया जाए जब पहले का भोजन पच जाए। न्यायशास्त्री ने कहा, मनुष्य को अपनी प्रत्येक वृत्ति, प्रवृत्ति न्यायपूर्वक तरीके से अंजाम देनी चाहिए ताकि किसी का अमंगल नहीं हो। धर्मशास्त्र का निचोड़ यूँ निकला, प्राणी मात्र की रक्षा करें, उसके प्रति दया का भाव रखें। यही श्रेय मार्ग है। भोजन तभी करें जब पहले का भोजन पच जाए। अपनी गतिविधियों को न्यायपूर्वक अंजाम देवें। प्राणी मात्र की रक्षा करें। समभाव रखें। याद रखें, कभी भी ओवर लोडिंग न करें। रसोइयों के हाथ से बना गरिष्ठ भोजन करने से बचें। रात की बजाय दिन में खाना खाएँ। सूर्योदय से सूर्यास्त तक भोजन करें। सूर्यास्त से सूर्योदय तक उपवास करें। यह हुआ संतुलन। चौबीस घंटे में से आधा समय खाने के लिए हुआ और आधा समय खान-पान से मुक्ति के लिए हुआ। कुल मिलाकर संतुलन होना चाहिए। संतुलन ही स्वास्थ्य है। असंतुलन ही रोगों का आधार है। __ यमराज ने नचिकेता को प्रेय और श्रेय की बात क्यों समझाई ? उन्होंने नचिकेता से कहा था, तुम्हें अकूत धन दे दूँ। देवांगनाएँ, अप्सराएँ दे दूं। लेकिन नचिकेता नहीं माना। तब यमराज को कहना पड़ा, हे नचिकेता, तुम्हें धन्य है। मैंने तुम्हारे सामने प्रलोभन के कितने ही रास्ते खोले, लेकिन तुम मोह में न आए। तुम सचमुच आत्मविद्या के अभिलाषी हो। आत्म-ज्ञान प्राप्त करने के सच्चे पात्र हो। तुमने प्रेय की बजाय श्रेय के मार्ग का चयन किया है अर्थात् आत्म-ज्ञान के मार्ग का चयन किया, भौतिक संसार का नहीं। मैं तुम्हें तीन लोकों का राजा बनाना चाहता था लेकिन तुमने स्वीकार नहीं किया।मैं इसके लिए तुम्हारा अभिनन्दन करता हूँ। 125 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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